विपक्ष को नजरअंदाज कर बजाया चुनाव का बिगुल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: विपक्ष हुए चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र की 246 नगर परिषद व पक्षी पार्टियों की सारी आपत्तियों को नजरअंदाज करते 42 नगर पंचायतों के लिए चुनाव घोषित कर दिए हैं। 2 दिसंबर को मतदान होगा तथा 3 दिसंबर को परिणाम आ जाएंगे। आरोप लगाया जा रहा है कि विपक्ष के उठाए मुद्दों की उपेक्षा कर यह चुनाव सत्ताधारियों के फायदे के लिए कराए जा रहे हैं। आयोग ने 31 अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची जारी की जबकि विपक्ष ने 15 अक्टूबर तक की सूची मांगी थी, जो उसे अब तक नहीं दी गई। सवाल है कि मतदाता सूची की धांधली दूर हुई क्या? इस सूची में बोगस मतदाता होने के आरोप लगाते हुए विपक्ष ने मोर्चा निकाला था। विपक्ष की मांग थी कि जब तक मतदाता सूची दुरुस्त नहीं होती, चुनाव न कराया जाए। सूची में कहीं घर का नंबर नहीं है, तो कहीं एक हा मकान के पत पर 100 वोटरों के नाम दर्ज हैं।
यद्यपि चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि वह सतर्कता बरतेगा, लेकिन विपक्ष इस पर कितना विश्वास करे? सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जनवरी 2026 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया था। आयोग की दलील है कि हम उसके अनुसार काम कर रहे हैं। चुनाव आयोग को जिम्मेदार स्वायत्त संस्था के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। मतदाता सूची में महागड़बड़ी की वजह से चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। सत्तापक्ष के नेता भी कह रहे हैं कि इतनी जल्दी क्या थी। बुलढाना के सत्तापक्ष के विधायक संजय गायकवाड़ ने कहा कि थोड़ा विलंब से चुनाव कराते तो हर्ज क्या था ? एक नेता ने तो मतदाता सूची स्क्रैप करने की बात भी कही।
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शिवसेना (उद्धव), मनसे, राकां (शरद पवार) व कांग्रेस की आपत्ति पर ध्यान न देते हुए चुनाव कराए जा रहे हैं। दूसरी ओर यह बात भी है कि स्थानीय निकाय लोकतंत्र की बुनियाद है। स्वच्छता, जलापूर्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, परिवहन सहित अनेक मुद्दों पर नगरपालिका जनहित में निर्णय लेती है। अनेक वर्षों से चुनाव न होने की वजह से जनप्रतिनिधि नहीं हैं, इसलिए जनसमस्याओं की उपेक्षा हो रही है। शहरों में कचरा, पानी की कमी, सड़कों के गड्डे जैसी समस्याएं ज्वलंत हो रही हैं। अधिकारियों के भरोसे आखिर कब तक काम चलता! शहर का विकास चुनाव का केंद्र बिंदु रहना चाहिए। स्थानीय सुशासन के लिए यह चुनाव महत्व रखता है। है। सत्ता का विकेंद्रिकरण जरूरी है। नगर परिषद व नगर पंचायत के पास संसाधनों की कमी है। उन्हें राज्य सरकार पर अवलंबित रहना पड़ता है। इस बार अतिवृष्टि का बुरा असर सभी तरफ देखा गया है। जो भी पार्टी या गठबंधन चुनकर आए, उसके सामने काफी चुनौतियां रहेंगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा