
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) परिवारवाद के सख्त खिलाफ हैं। उन्हें खानदान वाली राजनीति से नफरत है। ’’
हमने कहा, ‘‘यह मत भूलिए कि उन्होंने इसमें रियायत दी है। उन्होंने कहा कि यदि किसी नेता का बेटा योग्य है और अपने दम पर आगे आता है तो बात अलग है। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘यह बात पीएम को इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह इंडियन क्रिकेट बोर्ड में ऊंची और प्रभावशाली हैसियत रखते हैं तथा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज के भी राजनीति में सक्रिय होने की संभावना है। इसलिए अपनों के लिए कुछ विकल्प खुले रखने पड़ते हैं। मोदी का खास विरोध नेहरू खानदान को लेकर है। जवाहरलाल नेहरू 17 वर्ष और इंदिरा गांधी 15 वर्ष प्रधानमंत्री पद पर रहे। राजीव गांधी भी 1989 से 5 वर्षों तक पीएम रहे। सोनिया गांधी ने 10 वर्ष तक मनमोहन सिंह को सामने रखकर रिमोट कंट्रोल से यूपीए सरकार चलाई। इसलिए मोदी को ऐसा खानदान पसंद नहीं है जिसने पहले जनसंघ और फिर बीजेपी को सत्ता में आने से रोका। मोदी का वश चले तो दुनिया भर में परिवारवाद पर रोक लगा दें। जहां तक ही वंश की हुकूमत चलती है वहां शासकों के नाम का टोटा पड़ जाता है। ब्रिटेन के राजवंश में 3 चार्ल्स, 7 एडवर्ड, 6 जार्ज हुए। एलिजाबेठ भी 2 हुईं। हमने देश में भी गुप्तवंश में चंद्रगुप्त प्रथम और चंद्रगुप्त द्वितीय हुए। चाणक्य के शिष्य का नाम चंद्रगुप्त मौर्य था। ’’
हमने कहा, ‘‘जिनके खानदान में कोई वंश चलानेवाला नहीं रहता उनके बारे में कहा जाता है- आगे नाथ ना पीछे पगहा! ऐसे व्यक्ति परम स्वतंत्र और आत्मकेंद्रित होते है। वे वंशवाद का खोट ढूंढ़ते रहते हैं। इसके लिए नेहरु वंश, करुणानिधि वंश, लालू वंश, मुलायम वंश की मिसाल देते हैं ममता के भतीजे का भी जिक्र होता है। वे बताते हैं कि वंशवादी राजनीति के भ्रष्टाचार ने देश को डुबो दिया। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘यहां भी अपवाद है। ज्योतिरादित्य सिंधिया या अशोक चव्हाण को वंशवाद की राजनीति से नहीं जोड़ा जाता। वजह यह है कि वे बीजेपी में हैं। टारगेट पर तो सिर्फ सोनिया, राहुल और प्रियंका है। ’’






