(डिजाइन फोटो)
मणिपुर में एक बार फिर हिंसा की लहर शुरू हो गई है। 1 सितंबर को संदिग्ध कूकी मिलिटेंट्स ने इम्फाल वेस्ट के गांव कौत्रुक में गोलियां चलायीं और ड्रोन की मदद से ग्रेनेड गिराये, जिसमें 1 व्यक्ति की मौत हो गई और 18 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गये। 2 सितम्बर को फिर ड्रोंस का प्रयोग किया गया इसमें 3 व्यक्ति घायल हुए व 3 असाल्ट राइफलें चुरायी गईं।
6 सितंबर को मिलिटेंट्स ने दो जगहों पर रॉकेट दागे। जिनमें से एक रॉकेट राज्य के पहले मुख्यमंत्री के घर पर दागा गया। 7 सितंबर को मिलिटेंट्स ने जिरिबाम जिले में एक गांव पर हमला किया। जिससे उनके और ग्रामीण वालंटियर्स व राज्य पुलिस के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई और 6 व्यक्तियों की मौत हो गई।
मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की आपात बैठक बुलायी ताकि राज्य में निरंतर बिगड़ती कानून व्यवस्था पर विचार किया जा सके। मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए उचित कदम उठाये।
मुख्यमंत्री ने एक ज्ञापन राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को दिया है। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि केंद्र को मणिपुर में शांति सुनिश्चित करनी चाहिए और राज्य की चुनी हुई सरकार को पर्याप्त पॉवर देनी चाहिए। एक अन्य महत्वपूर्ण मांग यह की गई है कि केंद्र सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस समझौते को निरस्त कर दें।
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मणिपुर में 3 मई 2023 को जो हिंसा आरंभ हुई थी, वह अभी तक जारी है। इसे रोकने के लिए अलग अलग सुझाव दिए जा रहे हैं, जैसे पहले मिलिटेंट्स से हथियार लो, राज्य को सेना के सुपुर्द कर दो। कूकी-जोमी को अलग राज्य दे दो, आदि आदि। लेकिन मणिपुर की वर्तमान स्थिति पहले शांति की मांग कर रही है। गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे।
इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी। इसलिए आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद राज्य में हिंसा अचानक भड़क उठी, जो अभी तक नहीं रुकी है। जबकि अब तक सैकड़ों जानें जा चुकी हैं, हजारों घायल हैं, लाखों लोग सुरक्षा बलों के कैम्पों में शरण लिए हुए हैं और हजारों घरों व अन्य प्रतिष्ठानों को जलाकर राख कर दिया गया है।
टकराव की वजह
मैतेई समुदाय मुख्यत: इम्फाल घाटी में रहता है, जो कि राज्य के कुल भूमि क्षेत्र का मात्र दसवां हिस्सा है। अधिकतर आदिवासी समुदाय पहाड़ों में रहते हैं। इस तरह यह घाटी बनाम पहाड़ी टकराव हो जाता है। उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर असम, नागालैंड, मिजोरम व म्यांमार के बीच में है।
मणिपुर का अधिकांश हिस्सा पहाड़ों से घिरा हुआ है और इसके बीच में तश्तरीनुमा उपजाऊ घाटी है। इसके 10 पहाड़ी जिलों में विभिन्न आदिवासी कबीले रहते हैं। राज्य की 28 लाख आबादी में से लगभग 40 प्रतिशत पहाड़ों में रहती है। राज्य का बहुसंख्यक मैतेई समुदाय, जिसमें मैतेई पंगल (मुस्लिम) भी शामिल हैं। छोटी लेकिन घनी आबादी वाली घाटी में रहता है।
सुरक्षा बलों पर निशाना
मणिपुर में हिंसा की नई लहर से एक नई सुरक्षा चिंता उत्पन्न हो गई है। मिलिटेंट्स ड्रोंस व रॉकेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। ड्रोंस का इस्तेमाल सुरक्षाबलों पर बम गिराने के लिए भी किया जा रहा है। इस पर तुरंत नियंत्रण करने की आवश्यकता है। ड्रोन हमलों को रोकने व उन्हें काउंटर करने के तरीके तलाश करने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया है। पिछले 15 माह से चल रहा टकराव रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। ड्रोंस व रॉकेट्स ने इस टकराव को खतरनाक नया डायमेंशन दे दिया है, जिसे बहुत होशियारी से काउंटर किया जाना चाहिए।
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ड्रोंस को यह बात अधिक खतरनाक बना देती है कि इनका निर्माण सस्ते में किया जा सकता है और इन्हें खास काम के लिए भी बनाया जा सकता है। जिसे भी बुनियादी तकनीक की समझ है वह ड्रोंस बना सकता है। यह अच्छा है कि असम राइफल्स ने मणिपुर में एंटी-ड्रोन सिस्टम्स तैनात किये हैं और सीआरपीएफ ने भी एक एंटी-ड्रोन सिस्टम सुरक्षा बलों को दिया है ताकि राज्य में हिंसा को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त कुछ और एंटी-ड्रोन गन्स मणिपुर में भेजे जाने की संभावना है। सुरक्षा उपायों के साथ यह भी जरूरी है कि मणिपुर में स्थायी शांति स्थापित करने के तरीके भी तलाश किये जाएं।
लेख- डॉ. अनिता राठौर