(डिजाइन फोटो)
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्वीकार किया कि बीजेपी के मतदाताओं को अजित पवार के साथ की गई युति पसंद नहीं आई। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक अजीत पवार की पार्टी के वोट बीजेपी को ट्रांसफर नहीं हुए। यह लोकसभा चुनाव में कम सीटें मिलने का एक कारण रहा।
फडणवीस ने दावा किया कि अब मतदाता समझ गए हैं कि समय के अनुसार राजनीतिक समझौते करने पड़ते हैं इसलिए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की नाराजगी नहीं रहेगी तथा अजित पवार के वोटर भी बीजेपी को प्रेम से स्वीकार करेंगे। फडणवीस के इस दावे में कितना दम है, यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चलेगा। जिस तरह बीजेपी के लोगों ने एकनाथ शिंदे को स्वीकार कर लिया वह बात अजीत पवार को लेकर नहीं दिखाई देती।
इतने वर्षों तक अजित को भ्रष्टाचार का प्रतीक बताकर बीजेपी ने उनकी आलोचना की और फिर उन्हें महायुति में साथ ले लिया। अब विधानसभा चुनाव को देखते हुए मतदाताओं का मन बदलने की चुनौती रहेगी। इसके लिए बीजेपी को प्रयास करने होंगे।
अजित पवार की पार्टी से गठबंधन बीजेपी के लिए फायदे का नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में घड़ी चुनाव चिन्ह पर केवल 1 सांसद चुना गया था। क्या महायुति का मान रखने के लिए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मतदाता अजीत की पार्टी को वोट देना पसंद करेंगे?
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सर्वविदित है कि तड़के सुबह की शपथविधि के बाद अजीत पवार पलट गए थे लेकिन 2022 में वह फिर बीजेपी के साथ महायुति में आए और तब से लेकर अब तक टिके हैं। बीच-बीच में वह अपने चाचा शरद पवार के प्रति आदर व्यक्त करते रहते हैं। शरद पवार ने भी कहा कि परिवार में हम एक हैं लेकिन राजनीति में नहीं।
हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र दौरे में आकर शरद पवार की तीखी आलोचना की थी। इससे अजित पवार को बेचैनी महसूस हुई। उन्होंने माना कि ऐसी बातों से शरद पवार को सहानुभूति मिलेगी। सभी जानते हैं कि एकनाथ शिंदे हों या अजित पवार उन्हें युति में लेने का निर्णय दिल्ली में हुआ। इसके पीछे देवेंद्र फडणवीस के प्रयास थे।
शिंदे को साथ लेने से बीजेपी के परंपरागत मतदाता खुश हुए थे क्योंकि ऐसा करने से बीजेपी की आलोचना करनेवाले उद्धव ठाकरे को करारा झटका लगा था। शिंदे को एकदम सीएम बनाने से थोड़ी बेचैनी हुई थी लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं की थी लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप वाले अजित पवार को युति में लेने से संघ परिवार को बुरा लगा था।
बीजेपी नेताओं ने दावा किया था कि इसे लेकर कोई नाराजगी नहीं है लेकिन लोकसभा चुनाव ने आईना दिखा दिया। संघ परिवार प्रचार में नहीं उतरा और मतदान में भी उत्साह नहीं दिखाया था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा