(डिजाइन फोटो)
महाराष्ट्र सरकार का देसी गायों को राज्यमाता-गोमाता घोषित करने का फैसला सिर्फ धार्मिक आस्था से ही नहीं जुड़ा है बल्कि गौपालन को बढ़ावा देने वाला भी है। गोवंश का संरक्षण सरकारी नीतियों में रहने पर भी जमीन पर नहीं उतर पाया। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बड़ी तादाद में गोवंश तस्करी होती है और बूचड़खाने में भेजी जाती है। खाड़ी देशों को काफी बड़े पैमाने पर ‘बीफ’ का निर्यात किया जाता है।
आस्तिक हिंदू मानते हैं कि गाय में 33 कोटि देवताओं का वास होता है। विदेशी जर्सी गाय की तुलना में भारतीय गाय का दूध अधिक पौष्टिक होता है। शिशुओं के लिए मां के दूध के बाद गोमाता के दूध का ही विकल्प है। राज्य के कृषि, डेयरी विकास पशुपालन विभाग ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि इस निर्णय के मूल में पोषण में देसी गाय के दूध का महत्व, आयुर्वेदिक व पंचगव्य उपचार के लिए उपयोग तथा जैविक खेती में गाय के गोबर से बने खाद का इस्तेमाल शामिल है।
मंत्रिमंडल की बैठक में देसी गायों के पालन के लिए अनुदान योजना शुरू करने की मंजूरी दी गई। अल्प आय के कारण गोशाला संचालकों को आर्थिक दिक्कतों का समाना करना पड़ता है इसलिए देसी गाय पालन हेतु गोशालाओं को 2,000 रुपए अनुदान दिया जाएगा। यह योजना महाराष्ट्र गोसेवा आयोग के माध्यम से ऑनलाइन लागू की जाएगी।
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राज्य के प्रत्येक जिले में एक जिला गौशाला सत्यापन समिति होगी ताकि निगरानी रखी जा सके। महाराष्ट्र में गाय की विभिन्न नस्लें पाई जाती हैं। विदर्भ में गवलौ, मराठवाड़ा में देवनी, लाल कंधारी, पश्चिम महाराष्ट्र में खिल्लारी, उत्तरी महाराष्ट्र या खानदेश में डांगी नस्लें हैं। समूचे भारत में तो अनेक नस्लें हैं जिनमें कांकरेज गाय बहुत बढि़या मानी जाती है। पिछली शताब्दी में भारत की गायों को जहाज से ब्राजील ले जाकर वहां संकर नस्लें तैयार की गई थीं।
गाय को एक समझदार मवेशी माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण गाय का पालन करने की वजह से गोपाल कहलाए? दत्तात्रेय के चित्र में भी गाय मौजूद रहती है। शास्त्रों के मुताबिक गाय के मस्तक में सूर्य नाड़ी होती है। इसकी वजह से उसका दूध कुछ पीलापन लिए हुए और सुपाच्य रहता है।
गाय का अर्थशास्त्र पर आचार्य विनोबा भावे ने पुस्तक लिखी थी। गाय के दूध के अलावा गोमूत्र व गोबर का भी कमर्शियल वैल्यू है। जिस भूमि में उसका गोबर गिरता है वह उपजाऊ होजाती है। जीवन काल में और उसके बाद भी वह उपयोगी है। यह बात गो-अनुसंधान केंद्र देवलापार ने सिद्ध की है। इन बातों के अलावा यह भी जरूरी है कि दुहने के बाद गाय को लावारिस सड़कों पर कूड़ा खाने या ट्रैफिक जाम करने के लिए खुला न छोड़ा जाए।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा