1 अक्टूबर से शुरू होगी जनगणना (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: आगामी 1 अक्टूबर से आरंभ हो रही जनगणना देश के लिए क्रांतिकारी साबित होगी।यह डिजिटल लेआउट मैपिंग के जरिए समूचे देश का स्मार्ट नक्शा बनाने का प्रयास है।स्मार्ट मैपिंग तकनीक के माध्यम से पूरा देश एक इंटरएक्टिव डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगा।इस परिवर्तन के अत्यंत दूरगामी परिणाम होंगे।इस योजना के अंतर्गत देश की आवासीय और गैर-आवासीय सभी इमारतों को जियो-टैग कर स्वचालित रूप से डिजिटल लेआउट तैयार किया जाएगा। साथ ही, जियो-टैग की सहायता से अक्षांश-देशांतर निर्देशांक के आधार पर जीपीएस मानचित्र में उन इमारतों को एक डिजी डॉट में बदलना अत्यंत दूरदर्शी परिकल्पना है।
प्रत्येक घर या डिजी डॉट को 10 अंकों का एक विशेष अल्फा न्यूमरिक डिजी पिन और क्यूआर कोड मिलेगा।हर दुकान, प्रतिष्ठान, घर, मंदिर, स्कूल को एक सटीक डिजिटल पता प्राप्त होना बड़ी परिवर्तनकारी घटना होगी।इससे किसी भी घर या इमारत को ऑनलाइन आसानी से खोजा जा सकेगा।यह तकनीक हाउस लिस्टिंग का पुराना तरीका बदल देगी।इससे डेटा संग्रह और विश्लेषण में अभूतपूर्व सटीकता आएगी।
जनगणना तकनीकी रूप से उन्नत होगी और उसके आंकड़ों की गुणवत्ता व उपयोगिता भी बहुत बढ़ेगी।इससे जनगणना कर्मियों का समय बचेगा, काम का बोझ घटेगा और लोगों, घरों व परिवारों की संख्या का सटीक अनुमान संभव होगा।इसका व्यापक असर शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, निर्माण कार्य, शहरीकरण, कृषि, आपदा प्रबंधन, सुरक्षा जैसे दर्जनों क्षेत्रों पर सकारात्मक बदलाव के रूप में दिखाई देगा।व्यवस्थाएं अधिक चुस्त-दुरुस्त और पारदर्शी होंगी तथा कार्रवाइयां त्वरित और जनाभिमुख बनेंगी।इस तकनीक का कुछ उपयोग पहले से ही प्रधानमंत्री आवास योजना में शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां संपत्तियों को जियो-टैग किया जाता है।
दिल्ली सरकार ने भी शहरी विकास विभाग की परियोजना के तहत जमीन के ऊपर मानव निर्मित संरचनाओं जैसे पानी, सीवेज, बिजली, गैस का डिजिटल लेआउट मैपिंग कर लिया है।इंदौर में घर का डिजिटल पता और उसका क्यूआर कोड तय करने का अभियान चल रहा है, जहां प्रत्येक घर या भौतिक निर्माण के लिए एक यूनिक अल्फान्यूमेरिक डिजिटल कोड दिया जा रहा है।परंतु यह सब सीमित दायरे का काम है, अब व्यापक स्तर पर इसे लागू करना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।डिजिटल मानचित्रों में विभिन्न स्तर, वर्ग और विषय हो सकते हैं- जैसे सड़कें, इमारतें और प्राकृतिक विशेषताएं।इससे शहरी नियोजन, भूमि उपयोग, बसावट और पलायन के पैटर्न समझने में मदद मिलती है।बाढ़, भूकंप या अन्य आपदाओं में राहत कार्य तेज और सटीक होंगे।
परिसीमन के तहत राजनीतिक क्षेत्र जैसे विधानसभा या संसदीय सीट की सीमाएं तार्किक तरीके से विभाजित की जा सकेंगी।ग्रामीण और शहरी क्षेत्र का घालमेल नहीं होगा और न ही एक मुहल्ला दो अलग क्षेत्रों में बंटेगा।नगर नियोजन, पर्यावरण प्रबंधन, ट्रैफिक नियंत्रण और दुर्घटनाओं की रोकथाम में सटीकता लाई जा सकेगी।यदि किसी क्षेत्र में स्कूल और बच्चे ज्यादा होंगे तो वहां खेल के मैदान की योजना बनाई जा सकती है और कहीं आदर्श दूरी पर अस्पताल नहीं तो स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित की जा सकेंगी।चूंकि हर घर की लोकेशन पहले से दर्ज होगी, आधार पर सड़क, बिजली, पानी और अस्पताल जैसी इस सुविधाओं की योजना बनाना आसान होगा।
चुनाव आयोग की कुछ बड़ी समस्याएं भी अगली जनगणना और देशव्यापी एसआईआर के बाद खत्म हो जाएगी।इस तकनीक के डिजिलॉकर, जनधन, स्वास्थ्य मिशन जैसे सरकारी पोर्टलों, योजनाओं से जुड़ने के बाद एकीकृत सेवा वितरण संभव होगा।इससे सभी नागरिकों तक लाभ सीधे पहुंच सकेगा और बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी।यह पर्यटकों और नागरिकों को सुरक्षित, तेज या कम भीड़ वाला रास्ता चुनने में भी आजकल प्रचलित एप से कहीं अधिक मददगार होगा।डिजिटल मैपिंग की एक कवायद तमाम तरीके से फलदायी होगी.
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा