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नवभारत विशेष: आखिर बिहार में ऊंट किस करवट बैठेगा ?

Bihar Assembly Election 2025: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में भी यही तकनीक अपनाई है ताकि सत्ता विरोधी लहर और बेरोजगारी पर विपक्ष की आलोचना से बचा जा सके।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Oct 11, 2025 | 02:00 PM

आखिर बिहार में ऊंट किस करवट बैठेगा (सौ. डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: लगभग हर चुनाव में देखने को मिल रहा है कि मुफ्त की रेवड़ियां, विशेषकर कल्याण योजनाएं, नगदी वितरण का रूप लेने लगी हैं।यह वास्तव में पैसा बांटकर वोट खरीदने का ही प्रयास मात्र है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में भी यही तकनीक अपनाई है ताकि सत्ता विरोधी लहर और बेरोजगारी पर विपक्ष की आलोचना से बचा जा सके।नीतीश हर घर को प्रति माह 125 यूनिट बिजली मुफ्त दे रहे हैं, उन्होंने बेरोजगार युवकों को दो वर्ष तक 1,000 रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा की है और विधवाओं व बुजुर्गों को दी जाने वाली मासिक सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये कर दी है।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत जीविका गुटों से जुड़ी 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये प्रति महिला देने का वायदा है ताकि विपक्ष ने जो 2,500 रुपये प्रति माह महिलाओं को देने का वायदा किया है, उसे काउंटर किया जा सके।साथ ही बिहार राज्य जीविका निधि क्रेडिट को-ऑपरेटिव फेडरेशन भी लांच किया गया है, जो कि 7 प्रतिशत के कम ब्याज दरों पर जीविका गुटों के सदस्यों को ऋण देगा।आशा व ममता श्रमिकों के भत्ते में भी वृद्धि की गई है और पंचायतीराज व सिविक बॉडीज में महिलाओं का आरक्षण 50 प्रतिशत किया गया है।दूसरी ओर विपक्ष ने वायदा किया है कि वह हर माह 200 यूनिट बिजली मुफ्त देगा, हर शख्स का 25 लाख रुपये का मुफ्त मेडिकल बीमा होगा और भूमिरहित व्यक्तियों को 5 डेसिमल भूमि घर के लिए दी जायेगी।

राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि अगर उनका महागठबंधन सत्ता में आता है, तो सरकार बनाने के 20 दिन के भीतर कानून बनाया जायेगा कि हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को राज्य में सरकारी नौकरी मिले।यहां मुख्यतः तीन प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं।एक, क्या इन मुफ्त की रेवड़ियों से बिहार का कल्याण व विकास हो जायेगा? दो, अगर यह बिहार के लिए इतनी ही आवश्यक हैं, तो नीतीश कुमार इन पर चुनाव के समय ही गौर क्यों कर रहे हैं, जबकि वह वर्षों से राज्य की सत्ता पर काबिज हैं? तीसरा यह कि क्या बिहार के नागरिक इस लालच में आकर अपने मत का प्रयोग करेंगे? बिहार का औसत नागरिक औसत भारतीय की तुलना में एक तिहाई से भी कम कमाता है।उद्योग के नाम पर बिहार लगभग शून्य है।जाहिर है मुफ्त की रेवड़ियों से बिहार की स्थिति में सुधार नहीं आने जा रहा है।विकास के लिए ठोस योजनाएं बनानी व लागू करनी होती हैं।

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नीतीश कुमार के पास अपने रिपोर्ट कार्ड में दिखाने के लिए कुछ नहीं है कि बिहार के विकास के लिए उन्होंने यह काम किये।उनकी सारी ऊर्जा इसी बात में लगी रही कि वह किस जुगाड़ से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहें।आज वह राजनीति की ऐसी अनिश्चित पिच पर बल्लेबाजी कर रहे हैं कि वह किस गेंद पर ‘आउट’ हो जाएं या कर दिये जाएं, उन्हें मालूम नहीं।उन्हें मुफ्त की रेवड़ियों का सहारा लेना पड़ रहा है।ज्ञात रहे कि नीतीश कुमार की सियासी प्रासंगिकता लालू प्रसाद यादव को काउंटर करने के लिए थी? लेकिन अब तो लालू ही बिहार की राजनीति में धुंधली सी याद बनकर रह गए हैं।इसलिए तेजस्वी यादव मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश में लगे हुए हैं कि जब शासन की बात आती है, तो वह अपने पिता के पुत्र नहीं हैं, उनकी अपनी आधुनिक शैली है।इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में चुनाव शायद ही किसी एक मुद्दे से तय होते हैं।

बढ़-चढ़कर बांटी जा रहीं रेवड़ियां

बिहार में जाति का महत्व हमेशा से ही रहा है, शायद यही सबसे महत्वपूर्ण है।जाति भावनात्मक है, मतप्रयोग को प्रभावित करती है, एक नेता के प्रति हमदर्दी और दूसरे के प्रति नफरत उत्पन्न करती है।बिहार का हर नेता जाति की अहमियत को समझता है, इसलिए ही वहां जाति जनगणना करायी गई और दिल्ली को भी मजबूर होकर देशव्यापी जाति जनगणना कराये जाने की घोषणा करनी पड़ी।सवाल यह है कि इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में जाति का खेल कैसा रहेगा ?

लेख- नौशाबा परवीन

Attempt to buy votes by distributing money in bihar assembly elections

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Published On: Oct 11, 2025 | 02:00 PM

Topics:  

  • Bihar
  • Bihar Assembly Election 2025
  • Tejashwi Yadav

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