चुनाव चक्र की मजबूत धुरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, देश में कहीं भी चुनाव हो, वह चोरी, सीनाजोरी और मुफ्तखोरी की धुरी पर चलते हैं।लोकतंत्र की आड़ में वोटों की सौदेबाजी होती है।हार्सट्रेडिंग या घोड़ाबाजार ने लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरा नुकसान पहुंचाया है.’ हमने कहा, ‘आप इतना ज्यादा मुंह खोलेंगे तो लोग आपको अर्बन नक्सल कहने लगेंगे।अपनी बात अपने मन में रखिए और जैसा सिस्टम चल रहा है, उसके साथ आंख मूंदकर चलिए।वोटों की चोरी का घिसा हुआ रिकार्ड कब तक बजाएंगे?’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, पहले उम्मीदवार वोट मांगने जाता था तो दीदी को राम-राम और बड़ी बी को सलाम कहता था, अब सीधे फ्रीबीज या मुफ्त की खैरात देकर वोट खरीदे जाते हैं।पार्टी खुशी से देती है और पब्लिक मजे से रिसीव करती है।खजाना खाली हो जाए तो कोई बात नहीं, मुफ्त का चंदन घिस कर जनता के माथे पर लगाया जाता है।मुफ्त की चीजें और खैराती अनुत्पादक योजनाएं देने का राजनीतिक दबाव इतना बढ़ गया है कि तमाम राज्यों का बजट घाटा निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।देश के लगभग 1 दर्जन राज्यों की यही हालत है।यह भविष्य के लिए खतरनाक है।बिहार में भी ऐसी ही चुनावी बयार बह रही है।जिन महिलाओं को स्वयंरोजगार शुरू कर आत्मनिर्भर बनने के नाम पर एकमुश्त 10,000 रुपए दिए जा रहे हैं, वह खा-पीकर खत्म हो जाएंगे।महिला का हस्बेंड उस रकम का बैंड बजा डालेगा.’
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हमने कहा, ‘आप इतने जले भुने तरीके से बातें क्यों कर रहे हैं? मतदाताओं को प्रभावित करने और उनका दिल जीतने के लिए रेवड़ी तो बांटनी ही पड़ती है।मीठी रेवड़ी के लिए कोई तिल सक्रांत आने की प्रतीक्षा क्यों करे? जहां चुनाव वहां रेवड़ी! याद कीजिए कि मुफ्त चीजें देने का राजनीतिक हथकंड़ा 2006 में डीएमके ने तमिलनाडु में शुरू किया था।वहां गरीबों को टीवी सेट और 2 रुपए किलो चावल देकर करुणानिधि सत्ता में आए थे।फिर जयललिता उनसे भी चार कदम आगे निकल गई।उन्होंने अम्मा कैंटीन, अम्मा फार्मसी जैसी अनेक योजनाओं की बदौलत चुनाव जीता।छत्तीसगढ़ में बीजेपी के डा।रमनसिंह मुफ्त चावल देकर सत्ता में आए थे।छत्तीसगढ़ी भाषा में लोग उन्हें ‘चाउंरवाले बाबा’ कहने लगे थे।मध्यप्रदेश में लाडली लक्ष्मी और महाराष्ट्र में लाडकी बहन योजना ने कमाल दिखाया।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा