गोपालगंज विधानसभा सीट (फोटो-सोशल मीडिया)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार का गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र इतिहास, समृद्धि और राजनीतिक विरोधाभासों का एक अनूठा केंद्र है। इस जिले का नाम भगवान श्रीकृष्ण (गोपाल) के नाम पर पड़ा है और यह अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। एक तरफ जहां यह क्षेत्र थावे दुर्गा मंदिर, मांझा का किला और राजा मलखान किला जैसी गौरवशाली विरासतों को समेटे हुए है, वहीं दूसरी ओर, यह बिहार की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे लालू प्रसाद यादव का गृह जिला है।
वैदिक और आर्य काल से ही यह क्षेत्र सक्रिय रहा है, जहां राजा विदेह और वमन राजा चेरो ने शासन किया। स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों, जैसे 1930 का कर-अवज्ञा आंदोलन और जेपी आंदोलन, में यहां के नागरिकों ने बाबू गंगा विष्णु राय और पंडित भोपाल पांडेय जैसे नेताओं के नेतृत्व में अग्रणी भूमिका निभाई। सांस्कृतिक रूप से, भोजपुरी यहां की प्रमुख भाषा है, और यहां के लोग धार्मिक सौहार्द के साथ छठ पूजा, दुर्गा पूजा, और ईद जैसे त्योहार मनाते हैं।
गोपालगंज को आर्थिक रूप से बिहार के सबसे मजबूत क्षेत्रों में से एक माना जाता है, जो प्रति व्यक्ति आय के मामले में राज्य के शीर्ष 10 जिलों में गिना जाता है। स्थानीय अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन शुगर मिलों, एथेनॉल प्लांट, चावल और आटा मिलों तथा डेयरी यूनिट्स से मजबूती मिलती है। यह आर्थिक विकास यहां की राजनीति में एक महत्वपूर्ण कारक है, जहां मतदाता विकास के वादों और जमीनी हकीकत का आकलन करते हैं।
गोपालगंज सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। 1951 से अब तक हुए 19 चुनावों में, शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने 1950 से 1972 के बीच छह बार जीत दर्ज की। हालांकि, सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का गृह जिला होने के बावजूद, उनकी पार्टी यहां केवल एक बार, वर्ष 2000 में, जीत दर्ज कर पाई है।
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पिछले दो दशकों से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पकड़ मजबूत हुई है। पूर्व मंत्री सुभाष सिंह ने लगातार चार बार यहां से जीत हासिल कर इस सीट को भाजपा का गढ़ बना दिया। 2022 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी कुसुम देवी ने राजद के उम्मीदवार मोहन प्रकाश गुप्ता को महज 1,794 वोटों के करीबी अंतर से हराकर यह सीट बरकरार रखी। यह करीबी जीत भाजपा के लिए राहत तो लाई, लेकिन राजद की बढ़ती दावेदारी को भी उजागर किया।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,44,890 मतदाता हैं। यहां की राजनीति में जातीय समीकरण भी प्रभावी रहे हैं, लेकिन भाजपा ने सवर्ण मतदाताओं और विकास के एजेंडे के दम पर अपनी पकड़ बनाए रखी है, जबकि राजद मुख्य रूप से यादव-मुस्लिम समीकरण पर निर्भर करती है।
2025 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उसे उपचुनाव की करीबी जीत के बाद अपनी स्थिति को और मजबूत करना होगा। वहीं, राजद के लिए यह लालू के गृह जिले में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने का सुनहरा अवसर है। भाजपा द्वारा नए या सशक्त चेहरे को मैदान में उतारने की रणनीति, एनडीए में सीट बंटवारे की स्थिति, और स्थानीय विकास व रोजगार के मुद्दे इस बार गोपालगंज सीट का भविष्य तय करेंगे।