तानाजी सावंत (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, कुछ बेटे आज्ञाकारी होते हैं तो कुछ बिगड़ैल। पिता ने ज्यादा लाड़ प्यार से रखा और बचपन से हर फरमाइश पूरी की तो बेटा हठीला या जिद्दी बन जाता है और मनमानी करने लगता है। इसलिए कहा गया है कि बेटे को खिलाओ सोने का निवाला लेकिन उसे देखो शेर की आंख से! कभी-कभी बेटे की कोई हरकत पिता को उलझन या परेशानी में डाल देती है।’
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘महाराष्ट्र की महायुति सरकार में मंत्री रहे तानाजी सावंत का बेटा ऋषिराज घर में झगड़ा करने के बाद अपने दोस्तों के साथ चार्टर्ड विमान से बैंकाक रवाना हो गया। तानाजी अपने बेटे को किसी भी कीमत पर रोकना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपहरण का झूठा केस दर्ज करा कर प्रशासन और पुलिस को अपने बेटे की तलाश में लगा दिया। पूर्व मंत्री ने अपनी पूरी ताकत लगाकर हवा में ही बैंकाक जा रही फ्लाइट को जबरन यू-टर्न लेने के लिए मजबूर कर दिया। विमान चेन्नई में उतारा गया और फिर वापस पुणे लौट आया।’
हमने कहा, ‘कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता। एक कहावत और भी है- जान बची और लाखों पाए लौट के बुद्धू घर को आए। पिता का पुत्र के प्रति स्वाभाविक मोह रहता है। श्रवणकुमार के माता-पिता ने पुत्र के वियोग में प्राण त्याग दिए थे। राजा दशरथ ने भी राम के वियोग में ऐसा ही किया था। बेटा आंखों का नूर होता है, वह दूर चला जाए तो बर्दाश्त नहीं होता।’
हमने कहा, ‘सामान्य लोगों की बात अलग है। उनका बेटा घर से भाग जाए तो अखबार में फोटो के साथ विज्ञापन छपवाते हैं कि प्यारे बेटे जल्दी घर लौट आओ, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा, तुम्हारी हर इच्छा पूरी की जाएगी। पूर्व मंत्री तानाजी ने ऐसा कुछ नहीं किया। उनमें विमान को यू-टर्न कराने की सामर्थ्य थी। उनका छैलछबीला बांका बेटा बैंकाक नहीं जा पाया। बिगड़ैल घोड़े के समान बिगड़ैल बेटे को संभालना भी एक हुनर है। पुराने जमाने में लोग अपने बेटे को बिगड़ने या आवारागर्दी से रोकने के लिए उसके पैर में गृहस्थी की बेड़ी डाल देते थे। 20-21 वर्ष की उम्र में ही उसकी शादी करवा देते थे ताकि वह जिम्मेदार बन जाए।’
नवभारत विशेष से संबंधित ख़बरों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, सावंत ने बेटे को वापस लाने के लिए प्रशासन का दुरुपयोग किया। उनकी वजह से शिंदे गुट की किरकिरी हो रही है लेकिन नेता ऐसी बातों की परवाह नहीं करते।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा