(डिजाइन फोटो)
कुवैत में 42 भारतीय मजदूरों की जिंदा जलने से हुई मौत की खबर न केवल विचलित कर देनेवाली है बल्कि खाड़ी देशों में पैसा कमाने गए भारतीयों की सुरक्षा का ज्वलंत प्रश्न भी खड़ा कर देती है। तथ्य यह है कि वहां ये लोग अत्यंत असुरक्षित व अमानवीय व अस्वास्थ्य का स्थितियों में रहने को मजबूर हैं। इनमें भारत से गए बढ़ई, राजमिस्त्री, फैब्रिकेटर, पाइप फिटर, प्लम्बर, ड्राइवर, क्रेन आपरेटर, कुरियर, फूड डिलीवरी ब्वाय तथा घरेलू नौकरों का समावेश है।
इन्हें या तो अधूरी बनी इमारतों के तंग कमरों में रहना पड़ता है या किसी मजदूर शिविर में रखा जाता है। ऐसे ही मजदूर कैंप में लगी भीषण आग में इन श्रमिकों की जान ली।
कुवैत की कुल आबादी में 21 प्रतिशत भारतीय हैं। वहां की जनसंख्या 4,859 मिलियन है जिन 1,546 मिलियन कुवैती नागरिक हैं और 3।3 मिलियन बाहर से आए लोग है। ज्यादातर केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश व पंजाब के लोग वहां रोजगार के लिए जाते हैं। समय-समय पर भारतीय दूतावास वहां काम कर रहे भारतीयों के लिए एडवाइजरी जारी करता है कि वे किसी भेदभाव या शोषण से बचे और किसी झांसे में न आएं।
कुवैत में काम कर रहे भारतीयों को भारत सरकार 10 लाख रुपए की प्रवासी भारतीय बीमा पालिसी देती है जिसमें दुर्घटना में मौत या स्थायी विकलांगता पर 10 लाख रुपए का कवरेज है। 30 वर्ष से कम आयु की ऐसी महिलाओं को नौकरी के लिए खाड़ी देश जाने की अनुमति नहीं दी जाती जो घरेलू नौकर, ब्यूटीशियन, हेयर ड्रेसर का काम करती हैं। लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा