मां दुर्गा की मूर्ति के लिए जरूरी वेश्यालय की मिट्टी (सौ.सोशल मीडिया)
Shardiya Navratri 2025: देवी शक्ति की उपासना का महापर्व ‘शारदीय नवरात्रि’ इस बार 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे। यानि इस बार मां दुर्गा अपने भक्तों पर 9 नहीं बल्कि 10 दिनों तक कृपा बरसाएंगी। हिंदू धर्म में नौ दिनों का यह त्योहार देवी के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
उत्तर भारत और उत्तर पूर्व में नवरात्रि का पावन त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे नौ दिन मां की पूजा पूरी विधि-विधान के साथ की जाती है। माता की स्थापना से पहले मां की मूर्ति को तैयार किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि मां की मूर्ति की मिट्टी कहां से लाई जाती है ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण करने के लिए वेश्यालय की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। आइए जानें इस बारे में-
लोक मान्यताओं के अनुसार, आदि शक्ति मां दुर्गा मूर्ति की के लिए वेश्याओं के घर की मिट्टी लाने की यह परंपरा शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय की फिल्म देवदास में भी दिखाई गई थी।
हालांकि, आज भी कई लोग इस बात को नहीं जानते कि दुर्गा की मूर्ति के लिए ‘निशिद्धो पल्ली’ या रेड-लाइट जिले से मिट्टी लाना एक परंपरा है, जो बंगाल और उसके पड़ोसी राज्यों में सदियों से चली आ रही है।
परंपरागत रूप से, पश्चिम बंगाल में मूर्ति निर्माण के केंद्र, कोलकाता के कुमारतुली में दुर्गा की मूर्तियों को बनाने के लिए एक यौनकर्मी के घर के दरवाजे से ‘पुण्य माटी’ (पवित्र मिट्टी) लाना जरूरी माना जाता था।
ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति किसी वेश्या के घर में कदम रखता है, तो वह अपने सारे पुण्य और पवित्रता बाहर ही छोड़ देता है, जिससे दरवाजे की मिट्टी शुद्ध हो जाती है। इसके अलावा इस परंपरा की कहानी प्रभु श्रीराम से भी जुड़ी हुई है। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत भी भगवान राम के समय से हुई थी।
दरअसल, दुर्गा पूजा का पारंपरिक समय वसंत ऋतु के दौरान होता है, जिसे बसंती पूजा कहा जाता है। हालांकि, शरद ऋतु में इस त्योहार को मनाने की परंपरा भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध से पहले देवी दुर्गा का आशीर्वाद लेने के लिए शुरू की थी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने अपनी दुर्गा मूर्ति के लिए एक वेश्या अम्बालिका के घर की मिट्टी का इस्तेमाल किया था।
दूसरी मान्यता के अनुसार वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिष्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया। उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है। वास्तव में इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करने का एक बड़ा जरिया है।
एक सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार कहा जाता है कि पुराने समय में एक वेश्या माता दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उसे समाज में तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करने की परंपरा शुरू करवाई।
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इसी के साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा। तभी से वेश्यालय की मिट्टी से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण करने की प्रथा प्रचलित हुई।
इन सभी मान्यताओं की वजह से इस अनोखी प्रथा का चलन शुरू हुआ और दुर्गा प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल जरूरी हो गया।