नेपाल में भी हरतालिका तीज व्रत का रहता है उत्साह (सौ. सोशल मीडिया)
Hartalika Teej in Nepal: 26 अगस्त को सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा हरतालिका तीज व्रत रखा जाएगा। यह व्रत भारत के अलावा नेपाल में भी हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। नेपाल में हरतालिका तीज व्रत नेपाली भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इस मौके पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। भारत में तीज व्रत की परंपराओं की तरह ही नेपाल में भी परंपराएं निभाई जाती है। नेपाल में भारत की तरह ही महिलाएं व्रत और प्रार्थना करती है। चलिए जानते है विस्तार से लेख…
हरतालिका तीज व्रत की पूजा सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा रखा जाता है नेपाल में भी यह परंपरा निभाई जाती है। नेपाल में हरतालिका तीज व्रत के दिन हज़ारों महिलाएँ काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ जैसे मंदिरों में अनुष्ठान करने, प्रार्थना करने और भगवान शिव का आशीर्वाद लेने जाती हैं। वे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति और एक सुहावने वैवाहिक जीवन की आशा के प्रतीक के रूप में कठोर उपवास रखती हैं, अक्सर अन्न और जल का त्याग करती हैं।
इस व्रत को लेकर पशुपतिनाथ मंदिर के एक भक्त बताते है कि, कोपिला शिवकोटी ने बताया, “देवी पार्वती जब आठ वर्ष की थीं, तब उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने के लिए व्रत रखा था। उसी पौराणिक कथा के अनुसार, सदियों से महिलाएं इस दिन व्रत रखती आ रही हैं।”
हरतालिका तीज व्रत, सबसे खास तीज व्रत में से एक है यह नारीत्व और दृढ़ता का उत्सव माना जाता है। नेपाल में इस व्रत को करने के साथ ही महिलाएं मंदिरों में दर्शन करने के साथ ही सार्वजनिक चौराहों पर पारंपरिक तीज गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। ये गीत उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने, अपने संघर्षों की कहानियाँ साझा करने और एक-दूसरे से जुड़ने का अवसर देते हैं। तीज व्रत पर गाए जाने वाले गीत अक्सर दर्द और आशा का मिश्रण होते हैं, महिलाओं की सामूहिक शक्ति और एकता को उजागर करते हैं। नेपाल में खास परंपरा के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत से एक दिन पहले, ‘दर खाने दिन’ के रूप में कहा जाता है। यह परंपरा व्रत शुरू करने से पहले उनके परिवारों के सहयोग और प्रेम का प्रतीक है।
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हरतालिका तीज पर नेपाली महिलाओं का श्रृंगार भारतीय महिलाओं से काफी अलग होता है। तीज व्रत के दिन महिलाएं लाल साड़ी पहनती हैं और चूड़ियाँ, ‘पोटे’ (काँच के मोतियों से बना एक हार) और ‘सिंदूर’ से सजती हैं, जो वैवाहिक सुख और सौभाग्य के प्रतीक हैं। पूरे दिन, महिलाएँ विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेती हैं, जैसे स्नान, दीप प्रज्वलन और भगवान शिव की पूजा। अंतिम दिन, जिसे ‘ऋषि पंचमी’ कहा जाता है, महिलाएँ शुद्धि अनुष्ठान करती हैं, जिसमें ‘दतिवान’ (एक पवित्र पौधा) के 108 तनों से स्नान और ‘सप्तऋषियों’ (सात ऋषियों) की पूजा शामिल है। इन अनुष्ठानों को पूरा करके, महिलाएँ अपने तन और मन को शुद्ध करने का प्रयास करती हैं, जिससे उनका व्रत समाप्त होता है।