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नवरात्रि के दौरान माता रानी की पूजा में क्यों बोए जाते हैं जवारे, जानिए इसके पीछे का धार्मिक महत्व

Rules of Goddess Durga Worship: नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना के साथ जवारे उगाने की परंपरा होती है जो पूजा का एक स्वरूप ही नहीं है बल्कि घर को धन धान्य से पूर्ण करने का भी संकेत देते हैं।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Sep 24, 2025 | 09:58 AM

जवारे बोने का महत्व (सौ. डिजाइन फोटो)

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Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का दौर चल रहा है जहां पर आज माता दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जा रही है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है तो वहीं पर पूजा के कई नियम होते है जिसके बारे में कम ही लोग जानते होंगे। नवरात्रि के दौरान, जवारे बोने का भी महत्व होता है। यहां पर नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना के साथ जवारे उगाने की परंपरा होती है जो पूजा का एक स्वरूप ही नहीं है बल्कि घर को धन धान्य से पूर्ण करने का भी संकेत देते हैं।

नवरात्रि के जवारे जितने हरे-भरे और घने होते हैं घर में उतनी ही खुशहाली आती है। नवरात्रि में कलश के पास जवारे उगाने का क्या महत्व है और यह क्यों विशेष रूप से पूजा का हिस्सा होता है। इसके बारे में पुराणों में बताया गया है। चलिए जानते हैं इसका पौराणिक महत्व।

नवरात्रि में जवारे उगाने का महत्व और पौराणिक कथा

शारदीय नवरात्रि के दौरान जवार या जौ बोने का नियम होता है तो वहीं पर यह फसलों की उर्वरकता और समृद्धि और नए जीवन का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के समय कलश की स्थापना के साथ जवारे बोना शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि, यह नए जीवन के आगमन और सकारात्मक ऊर्जा का संकेत देता है। ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा की कृपा से ही ये ज्वार तेजी से अंकुरित होते हैं और उनका हरा-भरा होना घर में खुशहाली, समृद्धि और शांति लाता है।

यहां पर पौराणिक कथा के अनुसार, माता दुर्गा ने जब राक्षसों का संहार किया था उसी दौरान धरती अकाल और सूखे की स्थिति में थी। माता दुर्गा ने राक्षसों का संहार किया तो उस समय कुशलता का समय आया और पहली फसल के रूप में धरती पर जौ उगा था, इसी वजह से आज भी इसे माता दुर्गा की कृपा का प्रतीक माना जाता है और इसे आज भी समृद्धि के संकेत के रूप में देखा जाता है। ज्वार उगाने से यह संकेत मिलता है कि मां दुर्गा की पूजा सफल है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना हुआ है।

क्या होती है जवारे बोने की प्रक्रिया

नवरात्रि के दौरान जवारे बोने के नियम होते है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के समय मिट्टी के पात्र में मिट्टी भरी जाती है और इसे गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। मिट्टी को साफ करने के बाद इसमें ज्वार या जौ के बीज बोए जाते हैं। इसके बाद शुद्ध जल छिड़का जाता है और कलश में सुपारी, दूर्वा, चावल, सिक्का, हल्दी आदि सामग्री डालकर कलश के ऊपर एक जटाओं वाला नारियल रखा जाता है। यह प्रक्रिया शुभ मानी जाती है तो वहीं पर इस दौरान जवारे तेजी से बढ़ते हैं और हरे-भरे होकर पूजा स्थल में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। जौ बोने की यह प्रथा हमें अपने अन्न और धान्य का सदैव सम्मान करना सिखाती है। इसलिए पहली फसल को मां दुर्गा को समर्पित किया जाता है। नवरात्रि में जौ बोने के 2-3 दिन बाद से ही जवारे हरे होने लगते है।

ये भी पढ़ें- दांतों के बिना आपकी मुस्कान रहती है अधूरी, जानिए दांतों से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

कहते है कि, नवरात्रि के जवारे जितने भी ज्यादा हरे-भरे होते हैं घर में उतनी ही अधिक खुशहाली बनी रहती है। अगर आप भी घर में इन्हें उगाती हैं तो यह बहुत शुभ संकेत लेकर आते हैं।

 

 

 

Why are jaware sown during navratri to worship mother goddess

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Published On: Sep 24, 2025 | 09:58 AM

Topics:  

  • 9th day of Navratri
  • Navratri
  • Shardiya Navratri

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