कब मनाई जाएगी मकर संक्रांति (सौ.सोशल मीडिया)
Makar Sankranti Kab Hai 2026 Date: मकर संक्रांति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार, सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहारों की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है।
ज्योतिष-विज्ञान के अनुसार, जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। देश के कुछ हिस्सों में इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की उपासना की जाती है और पवित्र नदी में स्नान व दान का विशेष महत्व होता है। चलिए बिना देर किए जानते हैं नए साल में कब मनाया जाएगा मकर संक्रांति का पर्व।
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार साल 2026 में 14 जनवरी को सूर्य देव दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। यानि नए साल में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2026 को मनाया जाएगा।
इस दिन महापुण्य काल भी बन रहा है जो कि दोपहर 3 बजकर 13 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
मकर संक्रांति के दिन स्नान व दान का भी खास महत्व होता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना बहुत ही शुभ एवं पुण्यदायी माना गया है और पंचांग के अनुसार 14 जनवरी 2026 को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से लेकर 6 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
शास्त्रों में इस दिन को लेकर कई नियम भी बताए गए है। ऐसा कहा जाता है कि स्नान के बाद अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन खिचड़ी, कपड़े, दाल, चावल, गुड़ आदि का दान करना शुभ माना गया है।
बताया जाता है कि, हिन्दू धर्म और संस्कृति में मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा और शुभता की नई शुरुआत का संकेत भी होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि देवताओं का दिन इसी समय से शुरू होता है। कहा जाता है कि, इस अवधि में किए गए दान, स्नान और पूजा अत्यंत फलप्रद माने जाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान बहुत शुभ माना जाता है। इसके बाद तिल, गुड़, खिचड़ी, कंबल या वस्त्र दान करने की परंपरा है। तिल का सेवन और तिल-दान इस पर्व की प्रमुख पहचान होती है।
आपको बता दें, देश के कई हिस्सों में यह त्योहार पतंग उड़ाने के रूप में मनाया जाता है, जो ऊंचाइयों को छूने और उत्साह से आगे बढ़ने का संदेश देता है।
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मकर संक्रांति से छह माह तक सूर्य उत्तरायण रहता हैं। यह समय या अवधि आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस काल में पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है।
यही कारण है कि भीष्म पितामह ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए इसी उत्तरायण काल की प्रतीक्षा की थी, ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके। इसके साथ ही, सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ने लगती है, जिससे दिन बड़े होते हैं और ठंड धीरे-धीरे कम होने लगती है।