स्कंद षष्ठी(सौ.सोशल मीडिया)
Skanda Sashti 2025: भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित स्कंद षष्ठी व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस बार माघ माह में स्कंद षष्ठी का व्रत 3 फरवरी को रखा जाएगा। आपको बता दें, ‘स्कंद षष्ठी’ व्रत दक्षिण भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
इस दिन विशेष रूप से कार्तिकेय जी की पूजा अर्चना की जाती है। ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं इसी दिन शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी ने तारकासुर राक्षस का वध किया था और देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। ऐसे में आइए जानते है स्कन्द षष्ठी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त क्या है-
कब है स्कंद षष्ठी
पंचांग के अनुसार, माघ माह की षष्ठी तिथि की शुरुआत सोमवार 3 फरवरी की सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन 4 फरवरी को सुबह 4 बजकर 37 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, माघ माह में स्कंद षष्ठी का व्रत 3 फरवरी को रखा जाएगा।
स्कंद षष्ठी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करें।
फिर भगवान् कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और अपना मुख दक्षिण दिशा की तरफ करके पूजा में बैठ जाएं।
पूजन की समाग्रियों में दही और दूध जरूर शामिल करें।
भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें।
फिर भगवान को फूल माला, चंदन, वस्त्र, सिंदूर, कलावा और अक्षत अर्पित करें।
मंदिर में घी का दीपक जलाएं।
सकन्द षष्ठी की कथा पढ़ने के बाद भगवान कार्तिकेय की आरती करें।
प्रभु को भोग लगाकर क्षमा प्रार्थना करें।
यदि आपने व्रत रखा है तो लहसुन, प्याज, शराब और मांस-मछली का सेवन बिल्कुल भी न करें।
इस दिन व्रतियों को विशेष रूप से ब्राह्मी का रस और घी का सेवन जरूर करना चाहिए।
इसके अलावा रात के समय जमीन पर सोना चाहिए।
फिर अगले दिन सुबह स्नान के बाद गवान कार्तिकेय की पूजा करने के बाद व्रत खोल लेना चाहिए।
क्या है स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
हिन्दू धर्म में स्कंद षष्ठी व्रत का बड़ा महत्व है। मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। भगवान कार्तिकेय को संतान प्राप्ति और पारिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि का देवता भी माना जाता है।
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भगवान कार्तिकेय को युद्ध के देवता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए यह व्रत शत्रुओं से रक्षा और उनके ऊपर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। कहा जाता है कि, जो लोग विवाह या संतान सुख की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।