
ये है स्कंद षष्ठी व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Skanda Sashti ki Katha: आज 26 नवंबर को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जा रहा है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित स्कंद षष्ठी का व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को दक्षिण भारत में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर जैसे राक्षसों का वध किया था, इसलिए इस त्योहार को विजय का प्रतीक भी माना जाता है।
स्कंद षष्ठी की पूजा और व्रत करने से शत्रुओं पर विजय, सुख-समृद्धि और भय से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि, इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।
मान्यता है कि स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करने से जीवन की परेशानियां दूर होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति भी हो सकती है। स्कंद षष्ठी के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा-
स्कंद षष्ठी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार तारकासुर नाम के शक्तिशाली असुर ने देवताओं पर भारी आतंक मचा रखा था। ब्रह्माजी ने बताया कि उसका वध करने की शक्ति केवल भगवान शिव के पुत्र के पास ही है। उस समय भगवान शिव सती के वियोग में तपस्या में लीन थे।
सभी देवताओं के कहने पर माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया और उनका विवाह शिवजी से हुआ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विवाह के बाद जब शिव-पार्वती एक गुफा में थे, तब शिवजी के तेज से उत्पन्न वीर्य को एक कबूतर ने पी लिया, लेकिन वह उसे सह नहीं सका और गंगा में बहा दिया। गंगा की लहरों के कारण वह छह भागों में विभाजित हुआ, जिससे छह मुख वाले कार्तिकेय का जन्म हुआ।
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भगवान कार्तिकेय को बचपन में ही देवताओं का सेनापति बनाया गया था। उन्होंने अपनी पराक्रम और रणनीति से तारकासुर का वध किया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। भगवान कार्तिकेय का जन्म शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ, इसलिए इस दिन उनकी पूजा और व्रत करने की परंपरा शुरू हो गई।






