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कब हुई रक्षाबंधन की शुरुआत, मुगल बादशाह हुमायूं से भी जुड़ी है इसकी कहानी

Raksha Bandhan 2025:सावन मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाया जाता है। लेकिन इस त्योहार को मनाने के पीछे की कहानियों के बारे में जानते हैं आप। आइए जानते हैं कैसे हुई थी रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत।

  • By सीमा कुमारी
Updated On: Aug 08, 2025 | 06:32 AM

जान लीजिए क्या रहेगा राखी बांधने के मुहूर्त ( सौ. सोशल मीडिया)

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Raksha Bandhan Celebrations 2025 : राखी का त्योहार यानी भाई-बहन के अटूट प्यार का त्योहार। जो हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस साल 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन बहनें सज-संवरकर अपने भाई की आरती उतारती हैं, उनके टीका लगाती है और उनकी कलाई पर राखी बांधकर उनके मंगल के लिए कामना करती हैं।

साथ ही, भाई बहन को ये वचन देता है कि वो हमेशा उसकी रक्षा करेगा। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत कैसे हुई थी। इसके पीछे कई धर्म से लेकर इतिहास से जुड़ी कई कहानियां हैं जिनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए।

किसने बांधी थी सबसे पहले राखी :

कृष्ण-द्रौपदी से जुड़ी है कहानी

प्राप्त जानकारी के अनुसार, रक्षाबंधन की शुरुआत की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है, जिसमें भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच का प्रसंग प्रमुख है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल से जुड़ी एक कहानी है कि भगवान कृष्ण, द्रौपदी को अपनी बहन मानते थे।

आपको बता दें कि द्रौपदी पंचकन्याओं में से एक मानी जाती हैं। एक बार की बात है कि जब भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग जाती है और खून बहने लगता है। इसे रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी के आंचल को चीरकर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी।

द्रौपदी की इस श्रद्धा और प्रेम को देखकर भगवान कृष्ण ने उनकी सुरक्षा का वचन दिया था और कौरवों की सभा में द्रौपदी चीर हरण के समय चमत्कार करके अपनी द्रौपदी की लाज बचाई थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा, जिसमें बहनें भाई की कलाई पर कच्चा धागा बांधती हैं और भाई बदले में बहने की रक्षा का वचन देते हैं।

देवी लक्ष्मी और राजा बाली की कहानी

रक्षाबंधन से जुड़ी एक ये कहानी भी प्रचलित है, जो देवी लक्ष्मी और राजा बाली से जुड़ी है। बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था और उन्होंने उसे वचन दिया था कि वे उसकी रक्षा करेंगे। इसके लिए वे उसके द्वारपाल बनकर रह थे।

इस वजह से देवी लक्ष्मी को वैकुंठ में अकेली रह रही थीं। अपने पति को वापस लाने के लिए उन्होंने एक साधारण स्त्री का रूप धारण किया और राजा बाली के पास आश्रय लेने गईं। बाली ने उन्हें अपने महल में रहने की जगह दी। देवी लक्ष्मी के आने से बाली के जीवन में सुख-समृद्धि की बढ़ोतरी होने लगी।

फिर एक दिन सावन मास की पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने बाली की कलाई पर सूत का धागा बांधा और उसके लिए मंगल कामना की। इससे खुश होकर बाली ने उनसे मनचाही इच्छा मांगने को कहा। इस पर देवी लक्ष्मी ने द्वारपाल की ओर इशारा किया और अपने असली रूप में सामने आईं।

भगवान विष्णु ने भी अपना असल स्वरूप लिया। बाली ने अपना वचन पूरा किया और भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ वैकुंठ जाने के लिए कहा। तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।

रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी

रक्षाबंधन की बात हो और रानी कर्णावती का जिक्र न हो, ऐसा नामुमकिन है। मेवाड़ के राजा राणा सांगा के साथ रानी कर्णावती का विवाह हुआ था। गुजरात के शासक बहादुर शाह से युद्ध में राणा सांगा वीरगति को प्राप्त हुए थे।

यह भी पढ़ें – किन्हें भूल से भी नहीं बांधनी चाहिए राखी, जानिए रक्षाबंधन की पवित्रता से जुड़े नियम और परंपरा

ऐसे में मेवाड़ को हार से बचाने के लिए रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को पत्र में राखी भेजी और सहायता के लिए प्राथर्ना की, लेकिन ये राखी बादशाह हुमायूं तक काफी देर से पहुंची। इस वजह से जबतक हुमायूं अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुंचे तबतक रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था और बहादुर शाह की विजय हो चुकी थी।

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Published On: Aug 07, 2025 | 05:39 PM

Topics:  

  • Purnima
  • Raksha Bandhan
  • Sawan Somwar

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