
क्या है रोहिणी व्रत की पौराणिक कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Rohini Vrat katha: आज 07 नवंबर 2025, शुक्रवार को रोहिणी व्रत रखा जा रहा है। रोहिणी व्रत जैन धर्म के प्रमुख व्रत-त्योहारों में से एक है। यह व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान वासुपूज्य स्वामी की की पूजा की जाती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा भी होती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, इसलिए ये दिन ‘चंद्र पूजा’ का भी कहलाता है।
जैसा कि आप जानते है कि यह व्रत महिलाएं मुख्य रूप से पति की दीर्घायु, परिवार की समृद्धि और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए करती है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जिसे इस दिन पढ़ना शुभ माना जाता है। आइए जानते है क्या है रोहिणी व्रत की पौराणिक कथा?
रोहिणी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
रोहिणी व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा कर्म के सिद्धांत और व्रत के महात्म्य को दर्शाती है। प्राचीन काल में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा और रानी लक्ष्मीपति रहते थे। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम रोहिणी था।
एक बार राजा ने अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में ज्योतिषी से पूछा। उन्होंने बताया कि रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि रोहिणी का यह शांत और मौन स्वभाव पूर्व जन्म के कर्मों के कारण है। तब ज्योतिषी ने रोहिणी के पूर्व जन्म की कथा सुनाई।
बहुत समय पहले, उसी नगर में धनमित्र नामक एक राजा था। उसकी एक पुत्री थी जिसका नाम दुर्गंधा था, जिसके शरीर से अत्यंत दुर्गंध आती थी। राजा धनमित्र ने बहुत धन देकर अपने मित्र वस्तुपाल के पुत्र से दुर्गंधा का विवाह करवाया।
एक बार दुर्गंधा ने रानी सिंधुमती के कहने पर गलती से एक मुनिराज को कड़वी तुम्बी का भोजन खिला दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस पाप के कारण रानी सिंधुमती को कोढ़ हो गया और मृत्यु के बाद उन्हें नरक की प्राप्ति हुई। रानी सिंधुमती ही अगले जन्म में दुर्गंधा बनीं, और फिर कई जन्मों के बाद वह राजा माधवा की पुत्री रोहिणी के रूप में जन्मीं।
एक साधु के कहने पर, रोहिणी ने अपने पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति के लिए पूर्ण श्रद्धा से रोहिणी व्रत का पालन करना शुरू किया। उन्होंने हर महीने रोहिणी नक्षत्र के दिन व्रत रखा और भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा की। रोहिणी व्रत के प्रभाव से उनके सभी कष्ट दूर हो गए। उनका विवाह राजकुमार अशोक से हुआ और वे सुखी जीवन जीने लगे।
ये भी पढ़ें–शनिवार को पड़ रही है ‘गणाधिप संकष्टी चतुर्थी’, इस शुभ मुहूर्त में विधिवत पूजा से मिलेंगे विशेष फल
आखिर में, व्रत के प्रभाव से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई और फिर मोक्ष को प्राप्त किया. तभी से ये मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से रोहिणी व्रत करता है, उसे सभी प्रकार के दुखों, दरिद्रता और कर्मों के बंधनों से मुक्ति मिलती है. महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से उनके पति के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए फलदायी होता है।






