नागपुर मारबत (सोर्स: सोशल मीडिया)
Marbat Ki Kahani In Hindi : नागपुर महाराष्ट्र का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह शहर दुनियाभर में ‘ऑरेंज सिटी’ के नाम से मशहूर है। इसके अलावा, यह शहर कई सांस्कृतिक एवं परंपरा के लिए भी जाना जाता है। इन्हीं में से एक मारबत उत्सव।
नागपुर में हर साल मारबत त्यौहार मनाया जाता है। इसके लिए पीली मारबत पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। इसकी स्थापना हर साल गोकुल अष्टमी के दिन की जाती है। अभी दूर-दूर से भाविक मारबत देवी के दर्शन के लिये आये हैं। कहते हैं यहा पर मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी हो जाती है। इसी तरह काली मारबत और बडग्या भी तैयार किये जाते हैं।
उपराजधानी नागपुर देश का ऐसा शहर है जहां से सर्वप्रथम मारबत की शुरुआत हुई थी और आज सर्वाधिक मारबत (देवी स्वरुप पुतला) यहीं से निकाले जाते हैं। तान्हा पोला के दौरान मारबत और बडग्या (कचरे से बना पुतला) निकालते हैं। शहर में ऐसे कई मंडल हैं, जिनके द्वारा बडग्या और मारबत का निर्माण किया जाता है। तान्हा पोला के दौरान मारबत का जुलूस निकालने की प्रथा शहर में कई वर्षों से चली आ रही है।
बताया जाता है कि मारबत और बड़ग्या को बुराई के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस परंपरा को चलाने के लिए मारबत का निर्माण करनेवाले कारागीरों की पीढ़ियां अब भी काम कर रही हैं।
यह परंपरा काली और पीली मारबत बनाकर आज भी चलाई जा रही है। नागपुर के लोग इस उत्सव को बुरी ताकतों और बीमारियों को दूर रखने के लिए बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। इस उत्सव को लेकर लोग सड़कों पर जुलूस निकालकर गानों की धुन पर थिरकते हैं।
यह अनूठा पर्व नागपुर की खास पहचान है। मारबत 1885 से बनाई जा रही है। इसके निर्माण की शुरुआत मूर्तिकार गणपतराव शेंडे ने की थी। उनके जाने के बाद उनके बेटे भीमाजी शेंडे ने ये प्रथा जारी रखी और आज इनकी तीसरी पीढी यानी की गजानन शेंडे इसे निभा रहे है। आज मारबत को 149 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
ऐसी धारणा है कि मारबत को शहर से बाहर ले जाकर जलाने से सारी बुराइयां, बीमारियां, कुरीतियां भी खत्म हो जाती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इसे मनाने का उद्देश्य शहर में फैल रही बीमारियों से मुक्ति पाना था। उस समय शहर में बीमारियों का दौर सा चल पड़ा था। तब लोगों में एक धारणा बन गई थी कि मारबत का निर्माण करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और इसी तरह लोगों ने इसका निर्माण शुरू किया। ब्रिटिश काल से चली आ रही यह प्रथा इसे सिर्फ यही कारण नहीं है। इसके पीछे एक धार्मिक कारण भी है।
एक और कारण के बारे में तीसरा शिल्पकार गजानन शेंडे ने बताया के श्रीकृष्ण को दूध पिलाने गयी पूतना राक्षसी का वध होने के बाद गोकुल निवासियों ने घरका सभी कचरा निकालकर उसका जुलूस बनाया और उसे गांव के बाहर ले जाकर दहन किया था और सारी बुराइयों को नष्ट करने की पहल शुरू की थी। उसी का आधार लेके ये मारबत मानाया जाता है।
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यहां पर शहर में तान्हा पोला के दिन मारबत फेस्टिवल मनाने के लिए काली और पीली मारबत बनाई जाती हैं, जो परंपरा कई बरसों से चली आ रही है। वहीं पर दोनों मारबतों का निर्माण बुराई का प्रतीक के रूप में किया गया था।
जयवंत तकितकर ने बताया कि मारबत उत्सव भारत के नागपुर में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जिसका इतिहास 1881 से शुरू होता है। इस उत्सव की जड़ें किसानों द्वारा बुराई को दूर भगाने के अनुष्ठान में हैं और यह पौराणिक कथाओं, सामाजिक टिप्पणियों और मनोरंजन का एक अनूठा मिश्रण बन गया है।
पीली मारबत के निर्माण की शुरुआत 1885 से की गई थी। इसे बनाने का उद्देश्य उस शहर में फैल रही बीमारियों से मुक्ति पाना था। बताते हैं कि, बताया कि उस समय शहर में बीमारियों का दौर सा चल पड़ा था। तब लोगों में एक धारणा बन गई थी कि मारबत का निर्माण करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और इसी के तहत लोगों ने इसका निर्माण शुरू किया।
इसके अलावा काली मारबत का भी इतिहास बहुत पुराना है। इसका निर्माण पिछले १३१ वर्षो से किया जा रहा है। बताया जाता है कि १८८१ में नागपुर के भोसले राजघराने की बकाबाई नामक महिला ने विद्रोह कर अंग्रेजों से जा मिली थी, इसके बाद भोसले घराने पर बुरे दिन आ गए थे, इसी बात के विरोध में काली मारबत का जुलूस निकालने की परंपरा चली आ रही है।
मारबत को तैयार करके जुलूस की तरह निकाला जाता है। इसके बाद शहर से बाहर ले जाकर जलाने की परंपरा होती हैं। कहते हैं ऐसा करने से सारी बुराइयां, बीमारियां, कुरीतियां भी खत्म हो जाती है।
कहा जाता हैं कि, काली मारबत को महाभारत काल में रावण की बहन पुतना राक्षसी का रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण के हाथों मारे जाने के बाद गोकुलवासियों ने काली मारबत को गांव के बाहर ले जाकर जला दिया था। जिससे गांव की सभी बुराइयां व कुप्रथाएं बाहर चली जाएं, तभी से काली मारबत का निर्माण किया जा रहा है।
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जानकारों का मानना है कि, मारबत की परंपरा तो पुरानी है लेकिन कई वर्षो से बच्चों द्वारा बडग्या का निर्माण किया जाता है, कहा जाए तो शहर में बडग्या निर्माण की परंपरा बच्चों ने शुरू की है।
कागज, पेड़ की टहनियों और अपने घरों का कचरा आदि की सहायता से बच्चे बडग्या का निर्माण करते थे, उन्हीं बच्चों से प्रेरणा लेकर बड़े लोगों को भी अपनी भावनाओं और गुस्से को व्यक्त करने के लिए बडग्या के रूप में एक सशक्त माध्यम मिल गया।
शहर भर में घुमाने के बाद बडग्या का दहन कर देते हैं। बता दें कि, मारबत को तैयार करने के लिए शहर के कई पुराने कारीगर आज भी इसे तैयार कर रहे हैं और इसके महत्व को बताते हैं।