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गलत विचारों को कैसे रोकें? प्रेमानंद जी महाराज के उपदेशों से जानिए दिव्य प्रेम का मार्ग

Spiritual Thoughts: श्री प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मनुष्य का पतन या उत्थान बाहरी वस्तुओं से नहीं, बल्कि उन वस्तुओं के प्रति उसके विचारों से तय होता है। यदि किसी विषय का चिंतन ही न किया जाए।

  • By सिमरन सिंह
Updated On: Dec 29, 2025 | 07:05 PM

Premanand Ji Maharaj (Source. Pinterest)

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Premanand Ji Maharaj Teachings:आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है विचारों की शुद्धता। श्री प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मनुष्य का पतन या उत्थान बाहरी वस्तुओं से नहीं, बल्कि उन वस्तुओं के प्रति उसके विचारों से तय होता है। यदि किसी विषय का चिंतन ही न किया जाए, तो उसमें कोई सुख नहीं रह जाता। जो आनंद मनुष्य एकांत में अनुभव करता है, वह वस्तु से नहीं, बल्कि उसके स्वयं के विचारों से जन्म लेता है।

भोग की चाह: एक “प्रबल गरल”

महाराज सांसारिक भोगों को आत्मा के लिए “प्रबल गरल” यानी तीव्र विष बताते हैं। यह विष केवल शरीर को नहीं, बल्कि स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों को प्रभावित करता है। यह दृष्टि, स्पर्श और केवल चिंतन से ही भीतर प्रवेश कर जाता है और साधक को कामना में उन्मत्त कर देता है, जिससे वह अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भूल जाता है।

गीता में सांसारिक सुखों को “दुःख योनयः” कहा गया है अर्थात् दुख को जन्म देने वाले। ये सुख हृदय को अग्नि की तरह जलाते हैं और अंत में केवल पश्चाताप छोड़ते हैं। इतिहास साक्षी है कि बड़े-बड़े सम्राट भी अपार वैभव के बावजूद असंतुष्ट होकर संसार से विदा हुए।

मानव जीवन: दुर्लभ और सर्वोच्च अवसर

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार मानव जीवन देवताओं से भी श्रेष्ठ है। देवता अपने पूर्व पुण्यों को “स्वर्गीय होटल” में भोगते हैं; पुण्य समाप्त होते ही उन्हें फिर जन्म-मरण के चक्र में लौटना पड़ता है। केवल इस मानव देह में, विशेषकर भारत भूमि पर, “राधा राधा” या “कृष्ण कृष्ण” नाम जप द्वारा भगवत-प्राप्ति संभव है।

सिद्धियों का मोह और सच्ची सिद्धि

महाराज चेताते हैं कि आध्यात्मिक सिद्धियाँ केवल माया का “इंद्रजाल” हैं। प्रेम मार्ग की सच्ची सिद्धि चमत्कार दिखाना नहीं, बल्कि प्रभु के दर्शन की तीव्र तड़प में रो पड़ना है।

ये भी पढ़े: महाभारत का सबसे बड़ा सवाल: अर्जुन का धनुष शक्तिशाली था या कर्ण का? जानिए शास्त्रों के आधार पर सच

पवित्र आचरण की अनिवार्यता

दिव्य प्रेम के मार्ग की नींव शुद्ध आचरण है। साधक को अपनी पत्नी के अतिरिक्त हर स्त्री में “मातृ-बुद्धि” देखनी चाहिए।

  • पुरुषों के लिए: हर स्त्री माता, बहन या दुर्गा स्वरूप।
  • स्त्रियों के लिए: हर पुरुष पिता, भाई या पुत्र समान।

शक्ति का अपमान करते ही साधना नष्ट हो जाती है रावण और दुर्योधन इसका उदाहरण हैं।

सांसारिक उपलब्धियों की निरर्थकता

धन, मकान और रिश्ते मृत्यु के क्षण में साथ नहीं जाते। अंत में केवल धर्म और नाम-जप का धन ही शेष रहता है। नाम होंठों पर हो तो सब कुछ खोकर भी शोक का कारण नहीं रहता। महाराज एक दृष्टांत देते हैं सांसारिक मनुष्य उस कुत्ते जैसा है जो सूखी हड्डी चबाकर अपने ही मसूड़ों के खून को रस समझ लेता है। वैसे ही अज्ञानी मनुष्य बाहरी वस्तुओं में सुख ढूंढता है, जबकि वह केवल अपने चंचल मन की हलचल का अनुभव कर रहा होता है।

Stop negative thoughts learn the path to divine love through the teachings of premnand ji maharaj

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Published On: Dec 29, 2025 | 07:05 PM

Topics:  

  • Premanand Maharaj
  • Religion
  • Sanatan Hindu religion

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