
Non Vegetarian Prasad में क्या है खास। (सौ. AI)
Temple Where Non Vegetarian Prasad Offer: भारत में मंदिरों का नाम आते ही आमतौर पर शुद्ध शाकाहारी, बिना लहसुन-प्याज के भोग की छवि सामने आती है। अधिकांश हिंदू मंदिरों में सात्विक भोजन ही देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है। लेकिन इसी भारत में कुछ ऐसे अनोखे मंदिर भी हैं, जहां मांसाहारी भोग चढ़ाया जाता है और फिर उसे प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। ये परंपराएं सदियों पुरानी हैं और स्थानीय आस्था व सांस्कृतिक मान्यताओं से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
भारत सभ्यताओं और विश्वासों का देश है, जहां हर क्षेत्र की पूजा-पद्धति अलग है। जहां अधिकतर मंदिरों में निरामिष भोग चढ़ता है, वहीं कुछ शक्तिपीठों और देवी मंदिरों में पशु बलि और मांसाहारी प्रसाद की परंपरा आज भी जीवित है। यह परंपरा देवी को उग्र और शक्तिशाली रूप में मानने से जुड़ी मानी जाती है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर अपनी अलग पहचान रखता है। नवरात्रि के दौरान यहां बकरे की बलि दी जाती है। बलि के बाद मांस को मिट्टी के बर्तनों में पकाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मान्यता है कि यह परंपरा स्वतंत्रता सेनानी बंधु सिंह से जुड़ी हुई है। इसे देश के उन गिने-चुने मंदिरों में माना जाता है जहां मांसाहारी प्रसाद की परंपरा बेहद प्रचलित है।
असम की नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित कामाख्या मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में शामिल है। यहां मां कामाख्या को बकरे का मांस और मछली का भोग अर्पित किया जाता है। खास बात यह है कि यह भोग बिना लहसुन-प्याज के तैयार होता है और दोपहर के समय चढ़ाया जाता है, जिसे भक्त श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।
पश्चिम बंगाल का कालीघाट मंदिर मां काली को बकरे के मांस का भोग चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। वहीं बीरभूम जिले का तारापीठ मंदिर तांत्रिक पूजा के लिए जाना जाता है, जहां मांस और शराब का भोग लगाया जाता है और बाद में भक्तों में बांटा जाता है।
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पुरी के जगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित विमला मंदिर में दुर्गा पूजा के दौरान बकरे का मांस और मछली चढ़ाई जाती है। इसे ‘बिमला परुसा’’ कहा जाता है, जिसे भक्त बड़े श्रद्धा भाव से प्रसाद रूप में स्वीकार करते हैं।
अमृतसर का भद्रकाली मंदिर भी मांसाहारी भोग के लिए जाना जाता है। नवरात्रि और मेलों के दौरान यहां बकरे का मांस प्रसाद के रूप में चढ़ाया और वितरित किया जाता है।
ये मंदिर इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की धार्मिक परंपराएं कितनी विविध और गहरी हैं, जहां आस्था हर रूप में स्वीकार की जाती है।






