जानिए क्या है जितिया चील-सियार व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Jitiya Vrat 2025 Katha:संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला जितिया व्रत हिन्दू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है। क्योंकि इसमें हिन्दू माताएं अन्न-जल तक ग्रहण नहीं करतीं। यह व्रत हर साल आश्विन मास की अष्टमी तिथि को उतर भारत सहित बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार यह तीन दिवसीय जीवित्पुत्रिका यानी जितिया व्रत 14 सितंबर, रविवार को मनाया जा रहा है।
इस दिन व्रत रखकर माताएं संतान के खुशहाल जीवन और लंबी आयु के लिए कुशा से निर्मित जीमूतवाहन देवता (jimutvahan devta) की पूजा करती हैं। कुछ जगहों पर गोबर और मिट्टी से सियारिन और चील की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है।
हिन्दू परम्परा के अनुसार, पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा अवश्य सुनी या पढ़ी जाती है। वैसे तो जितिया से संबंधित तीन कथाएं हैं, जिसमें जीमूतवाहन की कथा, महाभारत से जुड़ी कथा और चील-सियार की कथा शामिल है। इसमें चील-सियार की कथा सबसे अधिक प्रचलित है, जोकि इस प्रकार है-
जितिया कथा के अनुसार, किसी समय की बात है कि एक चील और सियार नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में रहा करते थे। एक दिन दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते हुए देखा। महिलाएं जितिया व्रत को लेकर बात कर रही थी।
चील और सियार ने विचार किया कि वो खुद भी इस व्रत को करेंगे। लेकिन उपवास के दौरान सियार को बहुत भूख लग गयी और उसने चुपके से एक मरे हुए जानवर को खा लिया।
लेकिन चील ने सियार को मांस खाते हुए देख लिया था। वहीं दूसरी ओर चील ने पूरे श्रद्धा और समर्पण भाव से जितिया का व्रत किया और इसके नियमों का पालन किया।
कुछ समय बाद चील और सियार दोनों की मृत्यु हो गई। उनका दूसरा जन्म मनुष्य रूप में हुआ। दोनों ने एक ही घर में बहन के रूप में जन्म लिया। बड़ी बहन का नाम कर्पूरावती और दूसरी का नाम शिलावती था।
बड़े होने पर दोनों बहनों का विवाह कर दिया गया। कर्पूरावती का विवाह एक राजकुमार के साथ हुआ और शिलावती का विवाह एक ब्राह्मण के साथ हुआ। शादी के बाद दोनों बहनों को 7 पुत्र हुए। छोटी बहन शिलावती के सातों पुत्र जीवित बचें और बड़ी बहन से सभी पुत्र जन्म के कुछ दिन बाद ही एक-एक कर मर गए।
बड़ी बहन कर्पूरावती को छोटी बहन से जलन होने लगी कि गरीब घर में विवाह होने के बाद भी वह अपने पति और बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रही है और मैं राजकुमार की पत्नी होने के बावजूद भी सुखी नहीं हुई। उसने मन में सोचा कि, जरूर मेरी छोटी बहन डायन है जिसने जादू-टोना कर मेरी संतानों को मार दिया।
उसमें बदले की भावना तेज हो गई और उसने अपनी छोटी बहन के बच्चों को मारने के कई बार प्रयास किए लेकिन वह सफल नहीं हुई। एक बार रानी कर्पूरावती ने राजा से शर्त रखी कि उसे शिलावती के सातों पुत्रों का सिर चाहिए। राजा के मना करने के बावजूद भी वह नहीं मानी।
आखिरकार राजा को उसकी बात माननी पड़ी। राजा ने चांडाल को आदेश दिया कि शिलावती के पुत्रों का सिर काट कर लाओ। राजा की आज्ञा मानकर चंडाल ने ऐसा ही किया। इसके बाद कर्पूरावती ने सभी बच्चों के मुंड को लाल कपड़े में लपेटकर अपनी बहन के घर भिजवा दिया।
उस दिन शिलावती ने जितिया का व्रत रखा था। जब शिलावती ने जितिया का व्रत खोला तो देखा कि बहन के घर से कुछ संदेश आया है। उसने कपड़ों को हटाकर देखा तो उसमें नारियल, कपड़े और फल थे। दरअसल जितिया व्रत के प्रभाव से शिलावती के संतानों का मंडा हुआ सिर नारियल में बदल गया।
उधर बड़ी बहन प्रतीक्षा कर रही थी कब बहन के घर से दुखद समाचार आए और वह खुशियां मनाएं। लेकिन राजा ने उसे बताया कि शिलावती के सभी पुत्र जीवित हैं और मुंड नारियल बन गए। यह सब तुम्हारे ही बुरे कर्मों का फल है।
जब कर्पूरावती ने बहन से कहा कि, तुम्हारे सभी पुत्र जीवित हैं और मेरे नहीं। तो छोटी बहन शिलावती ने उसे पूर्व जन्म की घटना के बारे में बता दिया कि तुम पिछले जन्म में सियार थी और जितिया का व्रत रखकर तुमने मांस खाया था, यह सब उसी का फल है। मैं पिछले जन्म में चील थी और पूरे नियम से जितिया व्रत किया था, इसलिए मेरे सभी पुत्र जीवित हैं।
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बाद में कर्पूरावती ने भी विधि-विधान से जितिया का व्रत किया और उसे भी संतान सुख प्राप्त हुआ। चील सियार से जुड़ी यह कथा जितिया व्रत की महिमा दर्शाती है और इसका महत्व बताती है। इस तरह यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए जगत में प्रसिद्ध हो गया।