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नवभारत डेस्क : दस दिवसीय गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। घरों, पूजा पंडालों और मंदिरों में गणेशजी की पूजा का दौर जारी है। साधक पूजन, स्तोत्र पाठ और मंत्रोच्चारण आदि से गणपति की आराधना कर रहे हैं। गणपति जी को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है गणपति अथर्वशीर्ष। गणेशोत्सव के दौरान साधकों को इसका पाठ करने से भी गणेशजी की असीम कृपा प्राप्त होगी। धार्मिक मान्यता है कि प्रतिदिन अथर्वशीर्ष का पाठ करने से साधक के जीवन से अमंगल दूर होता है और शुभता आती है।
प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी को विघ्न बाधाओं का नाश करने वाला देवता माना जाता है। वैसे तो बुधवार का दिन गणपति जी को समर्पित है लेकिन दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान इनकी विशेष पूजा-आराधना की जाती है। ऐसे में इन दस दिनों तक साधक भगवान गणेश को समर्पित गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ भी कर सकते हैं जो काफी आसान और प्रभावकारी है। आइए जानते हैं इसके पाठ से होने वाले लाभ और महत्व के बारे में।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसे जातक जो जीवन में राहु, केतु और शनि जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभावों से पीड़ा उठा रहे हैं, उनके लिए गणेशोत्सव के दौरान गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना काफी लाभकारी रहेगा। इसके अतिरिक्त आप रोजाना या हर बुधवार को भी इसका पाठ कर सकते हैं जिससे जीवन में शुभता का आगमन होने लगेगा और दुखों व बाधाओं का अंत होगा।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगा पा रहे छात्रों को भी इस पाठ से बहुत लाभ मिलता है। इसके नियमित पाठ से एकाग्रता बढ़ने लगती है जिससे अध्ययन में छात्रों को लाभ मिलता है।
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ज्योतिषाचार्यों के अनुसार गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से जातक को अशुभ ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है और भाग्य का साथ मिलने लगता है। इसके पाठ से चित्त की एकाग्रता और आत्मविश्वास बढ़ता है तथा सही निर्णय लेने की शक्ति मिलती है। इसके प्रतिदिन पाठ से जीवन में स्थिरता आने लगती है तथा हर बाधा का नाश होता है।
इसका पाठ करने के लिए स्नान आदि करने के बाद आसन पर बैठें और धूप-दिप जलाने के बाद पाठ करें। भगवान गणेश को समर्पित खास दिनों जैसे बुधवार, संकष्टी चतुर्थी, गणेश चतुर्थी आदि दिनों में इसका पाठ विशेष लाभ देता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इसके रोजाना पाठ से आपको अपने जीवन में बदवाल नजर आने लगेंगे।
।। अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति ।।
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।