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किसी को भी अपना मत बनाओ, श्री प्रेमानंद जी महाराज का अमूल्य उपदेश, जो तोड़ता है अहंकार की जंजीर

Spiritual Updesh: आज के भागदौड़ भरे जीवन में मनुष्य स्वयं को अमर मान बैठा है। श्री प्रेमानंद जी महाराज अपने गहन आध्यात्मिक उपदेश में प्रश्न करते हैं क्या आपको पता है कि आपकी मृत्यु कब आएगी?

  • By सिमरन सिंह
Updated On: Dec 25, 2025 | 06:17 PM

Shri Premanand Ji Maharaj (Source. Pinterest)

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Shri Premanand Ji Maharaj ne Bhakti Marg ka Dekhya Rasta: आज के भागदौड़ भरे जीवन में मनुष्य स्वयं को अमर मान बैठा है। श्री प्रेमानंद जी महाराज अपने गहन आध्यात्मिक उपदेश में प्रश्न करते हैं क्या आपको पता है कि आपकी मृत्यु कब आएगी? यदि नहीं, तो फिर आप उस मार्ग की खोज क्यों नहीं करते जो जन्म और मृत्यु के चक्र को समाप्त कर दे। यह संसार ‘मृत्युलोक’ है, जहाँ हम सब अस्थायी वीज़ा पर आए यात्री हैं। समय पूरा होते ही धन, परिवार, प्रतिष्ठा और यह शरीर सब यहीं छूट जाता है, और देह अंततः भस्म बन जाती है।

साधना का अहंकार: सबसे बड़ा बंधन

अनेक साधक यह मान लेते हैं कि वे अपनी साधना, जप या दान के बल पर ईश्वर को प्राप्त कर लेंगे। “मैंने इतना जप किया”, “मैं हर महीने इतना दान देता हूँ” ऐसे विचार वास्तव में अहंकार को ही पोषित करते हैं। यह वैसा ही है जैसे कोई अंधा व्यक्ति भूसी चबाकर स्वयं को तृप्त समझे। श्री प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि केवल अपने प्रयासों से इस भवसागर को पार करना असंभव है; पार वही कराता है जो अनन्यता और प्रिय-लाल की कृपा से जुड़ता है।

यांत्रिक भक्ति नहीं, सच्चा शरणागति भाव

सच्ची आध्यात्मिक उन्नति ‘कर्ता भाव’ के सुख में नहीं, बल्कि ‘आश्रय’ के आनंद में है। अहंकार से भरे मन से पाँच घंटे का जप, पिघले हुए हृदय से की गई पाँच मिनट की प्रार्थना के सामने कुछ भी नहीं। जब साधक स्वयं को ‘गुणहीन’ मानकर किशोरी जी (राधारानी) की शरण में जाता है, तभी कृपा की वर्षा आरंभ होती है।

शरीर का मोह: माया का सबसे बड़ा छल

मनुष्य इस तीन हाथ की देह को सजाने-संवारने में जीवन गंवा देता है, जबकि विवेक से देखे तो यह शरीर अशुद्धियों का पात्र है। आँख, कान, नासिका हर द्वार से मलिनता निकलती है। इस नश्वर देह को ही सब कुछ मान लेना और शाश्वत प्रभु को भूल जाना, यही माया का महाठग है। यह शरीर केवल एक वस्त्र है, जिसे आत्मा मृत्यु के समय छोड़ देती है।

समाधान: वृंदावन और नाम-स्मरण

यदि मृत्यु को जीतना है तो चित्त की दिशा बदलनी होगी। ईमानदारी से कर्म करें, सेवा करें और कर्मफल भगवान को अर्पित करें। विषयासक्त संगति से बचें और “राधा-राधा” के अमृत में डूब जाएँ। श्री वृंदावन धाम में प्रभु की लीलाओं का श्रवण या नाम-स्मरण का एक घंटा भी परम प्रेम की तैयारी करा सकता है। मन को मित्र और संतवाणी को शत्रु मानने की भूल न करें। जागिए और अभी नाम जप शुरू कीजिए क्योंकि आगे वही सच्चा धन जाएगा।

ये भी पढ़े: महाभारत में अर्जुन की पत्नियाँ: द्रौपदी के अलावा किन-किन से जुड़ा था वीर धनुर्धर का जीवन?

जीवन की सरल उपमा

यह जीवन ट्रेन के यात्री जैसा है। आप सीट सजाएँ, झगड़ें, अधिकार जताएँ लेकिन ट्रेन अंतिम स्टेशन की ओर बढ़ रही है। उतरते समय सब यहीं रह जाएगा। केवल वही “मुद्रा” काम आएगी, जो आपने यात्रा में इकट्ठी की हरिनाम।

Choose anyone as your ideal but follow the invaluable teachings of shri premanand ji maharaj which break the chains of ego

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Published On: Dec 25, 2025 | 06:17 PM

Topics:  

  • Astro Tips
  • Premanand Maharaj
  • Religion
  • Sanatan Hindu religion
  • Spiritual

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