कांग्रेस नेता सचिन पायलट और अशोक गहलोत (फोटो सोर्स - सोशल मीडिया)
जयपुर: राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर से बयानबाजी गर्मा गई है। बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ने कांग्रेस नेताओं पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि अब उनके पास न तो कोई मुद्दा बचा है और न ही राजनीतिक जमीन। सचिन पायलट और अशोक गहलोत जैसे नेता अब खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए भाजपा नेताओं पर निजी हमले करने का रास्ता अपना रहे हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेस अब राजनीतिक रूप से पूरी तरह बेरोजगार हो चुकी है और उसका एकमात्र मकसद भाजपा के कामों पर उंगली उठाना रह गया है।
वक्फ संपत्तियों को लेकर जयपुर में आयोजित एक कार्यशाला में बोलते हुए उन्होंने कांग्रेस पर अल्पसंख्यक समुदाय को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि 65 वर्षों के शासन में कांग्रेस ने मुसलमानों को सिर्फ मोची, दर्जी या बैंडबाजे तक ही सीमित कर रखा था, जबकि बीजेपी ने उन्हें गर्व के साथ देश का नागरिक बनाने की दिशा में काम किया है।
जयपुर, राजस्थान: भाजपा के राज्यसभा सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल ने कहा, “कांग्रेस के पास अब कोई वास्तविक मुद्दा नहीं बचा है। वास्तव में, वे राजनीतिक रूप से बेरोजगार हो गए हैं…” pic.twitter.com/tgvZAxBa9J
— IANS Hindi (@IANSKhabar) April 17, 2025
योजनाओं में मुस्लिम समाज की बढ़ी भागीदारी
भाजपा के अनुसार केंद्र की योजनाओं में मुस्लिम समाज की भागीदारी लगातार बढ़ी है। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना, मुद्रा योजना और जनधन योजना सहित कई योजनाओं में मुस्लिम समाज को बड़ा लाभ मिला है। उन्होंने कहा, 65 साल तक कांग्रेस के नेताओं ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा और उनकी बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया। कांग्रेस के राज में मुसलमान सिर्फ़ मोची, पेंटर, दर्जी, बैंड बजाने वाले और पंचर ठीक करने वाले बनकर रह गए। जबकि बीजेपी के सिर्फ 11 साल के कार्यकाल में मुसलमानों को केंद्रीय नौकरियों में 5 प्रतिशत के मुकाबले 9.5 प्रतिशत हिस्सा मिला है।
वक्फ कानून में पारदर्शिता का दावा
वक्फ संपत्तियों को लेकर उन्होंने कहा कि पूर्व सरकारों ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को नज़रअंदाज किया और वक्फ में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। जबकि नया कानून पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और विकास की राह में मुसलमानों की अहम भूमिका को मान्यता देता है।
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यह पूरा घटनाक्रम आगामी चुनावों से पहले राज्य की राजनीति को एक नई दिशा देने वाला हो सकता है, जहां मुद्दे से ज्यादा अब बयानबाजियां और राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई पर जोर दिखने लगा है।