चिराग पासवान (डिजाइन फोटो)
पटना: पिछले कुछ दिनों में केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान कई बार विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। माना जा रहा है कि वह राज्य की राजनीति में नए नीतीश कुमार बनने की राह पर अग्रसर हैं। भाजपा नेतृत्व चिराग की रणनीति और कदमों पर नजर रख रहा है।
चिराग कई बार कह चुके हैं कि वह बिहार की राजनीति में वापसी करना चाहते हैं। सूत्रों का कहना है कि वह आरक्षित सीट की बजाय सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि एनडीए के सीट बंटवारे में पासवान को जो भी सीट मिलेगी, वह वहां से चुनाव लड़ सकते हैं।
क्रिकेट हो या सियासत टाईमिंग दोनों ही जगह महत्वपूर्ण होती है। बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की सक्रियता ऐसे समय में बढ़ी है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक विरोधी मानते हैं कि बिहार में उनका समय खत्म होने वाला है। उम्र के लिहाज से भी नीतीश कुमार को बिहार की सियासत में लंबी रेस का घोड़ा नहीं माना जा रहा है।
चिराग का मानना है कि वह राज्य की राजनीति में प्रमुख राजनीतिक दलों को एकजुट करने वाला चेहरा बन सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी को 6.47% वोट मिले थे और उसने 5 सीटें जीती थीं। जिसके बाद वह आत्मविश्वास से लबरेज नज़र आ रहे हैं।
बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद कहते हैं, ” बिहार में पासवान समुदाय चिराग के साथ है, लेकिन वह खुद को सिर्फ पासवान समुदाय के नेता तक सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि वे जनाधार बढ़ाना चाहते हैं। वह अपने साथ महिलाओं और युवाओं को जोड़ने के लिए ‘जुगाड़’ में जुटे हुए हैं।”
वहीं, भाजपा नेतृत्व का एक वर्ग मानता है कि पार्टी बिहार में अपने नेताओं को तैयार नहीं कर पाई है और इसी का फायदा चिराग पासवान उठा रहे हैं। एक नेता का कहना है कि अगर भाजपा नेतृत्व ने इस मामले में स्टैंड लिया होता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।
एक अन्य भाजपा नेता ने कहा, “चिराग का सामान्य सीट से चुनाव लड़ना इस बात का संकेत है कि वे बिहार की राजनीति में अगले नीतीश कुमार बनना चाहते हैं। नीतीश ने दो दशक तक स्पष्ट बहुमत के बिना भी बिहार की राजनीति पर राज किया है और उन्हें 20% से अधिक वोट मिले हैं। भाजपा इन दिनों नेता नहीं, कार्यकर्ता तैयार करती है।”
मौजूदा राजनीतिक हालात में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार को चेहरा बनाए रखने के अलावा उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। राष्ट्रीय राजनीति में खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए भाजपा के लिए बिहार काफी अहम है। भाजपा जाति जनगणना की घोषणा को बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के तौर पर देख रही है।
बताना होगा कि जाति जनगणना कांग्रेस और विपक्षी दलों का मुख्य मुद्दा रहा है। जदयू और लोजपा (रामविलास) जाति जनगणना के पक्ष में थे। अगर पार्टी का यह कदम सफल रहा तो उन्हे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा।