कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी अपने नए सरताज को खोजने में जुटी हुई है। यह चर्चा थी की फरवरी के तीसरे सप्ताह तक पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। लेकिन मार्च का तीसरा सप्ताह शुरू होने जा रहा है और पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव अब तक नहीं किया जा सका है। इसके पीछे का अहम कारण अब निकलकर सामने आया है।
भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष को चुनने में देरी के पीछे आरएसएस और बीजेपी के बीच की खींचतान बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि आरएसएस ने बीजेपी को नए अध्यक्ष का सुझाव दे दिया है। लेकिन पार्टी उस सुझाव पर सहमत नहीं है। यही वजह है कि अब अप्रैल के तीसरे हफ्ते तक नए अध्यक्ष का चुनाव होने की बात सामने आ रही है।
इस खींचतान पर आरएसएस का कहना है कि ‘बीजेपी नए अध्यक्ष पद के लिए जेपी नड्डा जैसा नाम चाहती है। वहीं, आरएसएस ऐसा व्यक्ति चाहता है जो संगठन का भरोसेमंद हो, जिसकी मंशा आरएसएस की कार्यप्रणाली और नीति पर चलने की हो। कम से कम नड्डा या नड्डा जैसा कोई नेता इस कसौटी पर तो खरा नहीं उतरता।’
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी का अगला अध्यक्ष कब चुना जाएगा? इस सवाल के जवाब में आरएसएस के सूत्र बीजेपी और आरएसएस के बीच चल रही खींचतान की ओर इशारा करते हैं। उनके मुताबिक, नए अध्यक्ष के नाम पर पार्टी और संगठन के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। इसी वजह से मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को 40 दिन का एक्सटेंशन मिला है। यानी 20 अप्रैल से पहले नए अध्यक्ष का नाम सामने आना मुश्किल है।
बीजेपी के नए अध्यक्ष का चुनाव न कर पाने की एक वजह 36 में से 24 राज्य इकाइयों में संगठनात्मक चुनाव न करा पाना भी है। अध्यक्ष चुनने के लिए आधे से ज्यादा राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना जरूरी है। अभी तक सिर्फ 12 राज्यों में ही चुनाव हुए हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए 6 और राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना जरूरी है।
नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर दो राज्यों के आरएसएस के विभाग प्रचारकों से बातचीत में पता चला है कि आरएसएस पार्टी के काम में दखल नहीं देता। वह सिर्फ सलाह देता है, वह भी मांगे जाने पर।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या सलाह नहीं मांगी गई, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘सलाह मांगी गई थी और हमने बहुत पहले ही दे दी है।’
इसके बावजूद जब नए अध्यक्ष के चुनाव में देरी की वजह पूछी गई, तो पता चला कि ‘सरकार और संगठन के विचार एक होने तक मंथन चलता रहेगा।’ हालांकि विभाग प्रचारक ज्यादा बात नहीं करना चाहते थे। वह इतना जरूर कहते हैं कि बीजेपी एक राजनीतिक संगठन है और आरएसएस एक सामाजिक संगठन। दोनों का काम अलग-अलग है।
उन्होंने कहा कि आरएसएस राजनीति नहीं करता। उसका काम सलाह देना है। सलाह का कितना इस्तेमाल होगा, यह पार्टी तय करेगी। 2024 में बीजेपी द्वारा आरएसएस की सलाह न मानने को लेकर विभाग प्रचारक ने कहा कि ‘देखिए, अभिभावक का कर्तव्य है कि वह नई पीढ़ी को सही सलाह दे। कभी नरमी से, कभी सख्ती से।’
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आगे जब और सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि ‘मैं जो कह सकता था, कह चुका हूं। इससे ज्यादा बताना मर्यादा के खिलाफ होगा। मैं इतना जरूर कहूंगा कि आरएसएस भाजपा का अभिभावक है। बच्चे अक्सर भटक जाते हैं। सही अभिभावक वही है जो उन्हें हर बार सही रास्ते पर लाए। अभिभावक बच्चे से नाराज हो सकता है, लेकिन उसे छोड़ नहीं सकता। आरएसएस भी अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा।’