चुनाव की प्रक्रिया में कई अहम किरदार होते हैं, जिनमें से पोलिंग एजेंट और काउंटिंग एजेंट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। हालांकि दोनों का काम अलग-अलग चरणों में होता है
एक सवाल ऐसा है जो हर किसी के मन में आता है की पोलिंग एजेंट और काउंटिंग एजेंट में क्या अंतर होता है
हालाँकि ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि मतगणना एक साथ एक से अधिक स्थानों पर एक ही समय में की जाती है। इसलिए सभी प्रत्याशियों के लिए एक ही समय पर सभी स्थानों पर मौजूद रहना संभव नहीं हो पाता है। इस कारण मतगणना स्थान पर उनके एजेंटों को नियुक्त किया जाता है।
पोलिंग एजेंट खासतौर पर उसी पोलिंग बूथ का वोटर होता है. दरअसल एक समान बूथ का वोटर नहीं मिलता है तो वो विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र का कोई व्यक्ति एजेंट बनाया जा सकता है।
निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों होता है , मतों की गिनती सभी प्रत्याशियों और मतगणना एजेंटों के रूप में उनके एजेंटों की उपस्थिति में ही की जाती है।
इसके साथ ही उम्मीदवार पोलिंग बूथ के पीठासीन अधिकारी को पहले ही बता दे देता है कि उसका पोलिंग एजेंट कौन होगा। इसके लिए अलग से एक फॉर्म जमा कराया जाता है। उम्मीदवार की ओर से फॉर्म और नाम दिए जाने के बाद ही चुनाव अधिकारी पोलिंग एजेंट को एक पहचान पत्र जारी करता हैं, जिसके बाद वो उस कमरे में बैठने के लिए अधिकृत होता है, जहां वोटिंग होती है।
मतदान के दौरान चुनाव अधिकारियों के अलावा पोलिंग बूथ पर कुछ और लोग भी बैठे होते हैं, जो वोटर पर्ची का मिलान करते हैं। बता दें कि इसको पोलिंग एजेंट कहते है। पोलिंग एजेंट हर बूथ पर होते हैं, और ये अलग-अलग पार्टियों के होते हैं जिन्हें उम्मीदवार की तरफ से भर्ती किया जाता है।