'जगन्नाथ धाम' विवाद पर इस्कॉन ने दी सफाई (फोटो- सोशल मीडिया)
भुवनेश्वर: अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) ने मंगलवार को कहा कि पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर को ‘धाम’ नाम देने में उसकी कोई भूमिका नहीं है और उसकी गतिविधियां पूजा-अर्चना और अनुष्ठान तक ही सीमित हैं। ममता बनर्जी सरकार ने इस्कॉन को दीघा मंदिर में पूजा और उससे संबंधित अनुष्ठानों का काम सौंपा है।
इस्कॉन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि दीघा मंदिर ट्रस्ट के 27 ट्रस्टी में से एक है और इसका ज्यादा प्रभाव नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 30 अप्रैल को दीघा में मंदिर के स्थापना उत्सव में भाग लिया था और उसे “जगन्नाथ धाम” बताया था, जिससे विवाद खड़ा हो गया। ओडिशा सरकार और दो शंकराचार्यों ने कहा है कि केवल पुरी में 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर को ही धाम कहा जा सकता है, किसी अन्य मंदिर को नहीं।
इस्कॉन के संचार निदेशक प्रेमानंद दास ने कहा कि इस्कॉन को गजपति महाराज से पत्र मिला है, ‘हमने स्पष्ट किया है कि इस्कॉन की भूमिका बहुत सीमित है।’ उन्होंने कहा कि इस्कॉन को दीघा मंदिर में पूजा और उससे संबंधित अनुष्ठानों का काम सौंपा गया है। दास ने कहा,’दीघा में जगन्नाथ धाम ट्रस्ट के 27 ट्रस्टी में से केवल एक इस्कॉन से है। ट्रस्ट में विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधि और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नामित अधिकारी शामिल हैं।
दास ने आगे कहा कि दीघा में ‘जगन्नाथ धाम ट्रस्ट’ की स्थापना तीन साल से भी पहले हुई थी, जो तटीय शहर में मंदिर के निर्माण से बहुत पहले की बात है। दास ने दीघा जगन्नाथ मंदिर से ‘धाम’ शब्द हटाने के बारे में लाचारी जताते हुए कहा, ‘हमें बहुत बाद में सदस्य के रूप में जोड़ा गया। हम ट्रस्ट बोर्ड के सदस्यों में से एक हैं और हमारा बहुत अधिक प्रभाव नहीं है।’
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वहीं, पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति (एसजेटीएमसी) के अध्यक्ष गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब ने 5 मई को इस्कॉन के मायापुर स्थित शासी निकाय के अध्यक्ष श्री गोवर्धन दास प्रभु को एक पत्र लिखकर उनसे दीघा स्थित मंदिर से ‘धाम’ शब्द हटाने का अनुरोध किया।