पश्मीना रोशन (Photo Credits: Instagram)
मुंबई: हिंदी सिनेमा में रोशन सरनेम का बड़ा नाम है. फिल्मकार राकेश रोशन, संगीतकार राजेश रोशन और अभिनेता ऋतिक रोशन, एक ही परिवार से आनेवाले इन तीनों ही व्यक्तिओं ने अपनी कला के दम पर अपनी अलग पहचान कायम की. इस परिवार की लिगेसी को आगे बढ़ाते हुए राजेश रोशन की बेटी पश्मीना रोशन अब फिल्म इंडस्ट्री में बतौर एक्टर अपनी शुरुआत करने जा रही हैं. वे साल 2003 में आई फिल्म ‘इश्क विश्क’ की रीमेक ‘इश्क विश्क रीबाउंड’ के साथ अपना बॉलीवुड डेब्यू कर रही हैं. पश्मीना ने अपनी इस फिल्म को लेकर नवभारत से विशेष बातचीत की जहां उन्होंने अपने करियर, परिवार और अन्य चीजों पर भी चर्चा की. पेश है इस बातचीत के कुछ अंश…
जी बिलकुल, हम पर प्रेशर तो हैं. कौन नहीं चाहेगा कि उसकी फिल्म ऑडियंस को पसंद आए. अंत में हम यही चाहते हैं कि दर्शक हमें स्वीकार करें. हमने इस फिल्म में जी और जान लगा दी है. ये फिल्म आज के युग के प्रेम को दर्शाती है. मैं प्रार्थना करती हूं कि लोग हमारे काम को सराहे और लोग इसे सिनेमाघरों में देखें.
आज के समय में प्रेम संबंधों में कई सारी नई चीजें आ गई हैं. अब ऑनलाइन डेटिंग और न जाने कई सारी चीजें आ गई हैं. लेकिन हमारे माता-पिता के जमाने का प्रेम बेहद सरल और सुंदर था. हां एक इंसान के रूप में हम लोग हमेशा से उलझे हुए रहे हैं क्योंकि भावनाएं हमेशा एक ही होती हैं चाहे कितना भी जमाना बदले. मेरे अनुसार, प्यार तो प्यार होता है. मेरे पेरेंट्स 35 साल से साथ हैं और आज भी वो डेट पर जाते हैं, मुझे अपने जीवन में उस तरह का प्यार चाहिए.
मुझे ऋतिक ने कई सारी चीजें सिखाई हैं. उन्होंने हमेशा मुझे सही सलाह दी है. वे एक यूनिक पर्सनालिटी हैं. वो मुझे हमेशा सिखाते हैं कि मेहनत करो क्योंकि इसका कोई दूसरा पर्याय नहीं है. ये मैं उनके व्यक्तित्व में भी देखती हूं. मनोरंजन जगत में आप जो भी कर रहे हैं, उसे देखना और परखना जरूरी है ताकि आप ग्रो करे, ये चीज उन्होंने मुझे सिखाई. जो भी कम मैं करती हूं मैं उन्हें जरूर दिखाती हूं जिसका वो मुझे पूरी ईमानदारी से फीडबैक देते हैं. उस समय वो ये नहीं सोचते कि मैं उनकी बहन लेकिन वो मुझे हमेशा सच बताते हैं. ये गुण हमारे परिवार में सभी में हैं. मेरे लिए उनका फीडबैक बहुत मायने रखता है.
मैं कहीं भी जाऊं मेरे सरनेम का वजन तो हमेशा मेरे साथ रहेगा. लेकिन मेरे परिवार ने कभी भी मुझे काम दिलाने के लिए कहीं फोन नहीं किया. मुझे सबसे बड़ा फायदा परिवार से ये मिलता है कि वे इस क्षेत्र के अनुभवी हैं तो वो मुझे सही सलाह देते हैं. लेकिन दुनिया में कहीं बी जाओ बिना हार्डवर्क के कुछ नहीं मिलता. मैं बचपन में ‘कोई मिल गया’ के सेट पर जाती थी और वहां से मुझे फिल्मों में दिलचस्पी हुई क्योंकि वहां सेट पर से घर आने का मन ही नहीं होता था. यकीन करिए फिल्मों के सेट पर मुझे सबसे अधिक खुशी मिलती है. लेकिन उसके बाद फिल्मों के लायक बनने के लिए मैंने बहुत मेहनत की. ऑडिशन देने से पहले मैंने एक्टिंग और डांस क्लासेज किये.
मुझे हमेशा से लगता था कि ये सभी मशहूर हैं क्योंकि इनके इर्दगिर्द लोगों का जमावड़ा होता था. मैं समझ नहीं पति थी लेकीन जब मैं बड़ी हुई और जब अपने पिता और परिवार के अन्य लोगों का काम देखने लगी तो मैं हैरान रह गई और मुझे एहसास हुआ कि ये घर तो फनकारों का है. फिर मैंने चीजों को अलग तरह से देखना शुरू किया और पाया कि ये सभी मेरे भीतर के कलाकार को भी बढ़ावा देते हैं. अगर मैं पढ़ाई से अधिक समय पियानो सीखने में लगाना चाहती थी तो भी वो मुझे सपोर्ट करते थे और उसकी एहमियत करते थे. मैं बेहद भाग्याश्याली हूं कि मुझे ऐसा परिवार. जब मैंने उन्हें कहा कि मुझे एक्टर बनना है तो मेरे लिए वो बेहद आसन था.