प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
यवतमाल: अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह से सूर्यदेवता की प्रचंड रश्मियां प्राणी जगत की परीक्षा लेने लगी हैं। एक तरफ भीषण गर्मी का सामना कर रहे नागरिकों को पानी की कमी से भी जूझना पड़ रहा है। यवतमाल शहर सहित जिले में भीषण गर्मी का असर देखने को मिल रहा है। शुक्रवार को यवतमाल जिले का तापमान 43.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
भीषण गर्मी के चलते जिले के महत्वपूर्ण छोटे, बडे और मध्यम बांधों का जलस्तर भी घटने लगा है। जिससे जलसंकट के आसार बढ़ने लगे हैं। पिछले कुछ दिनों से तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला गया है। इसके कारण परियोजना में जल भंडारण तेजी से कम हो रहा है।
वर्तमान में जिले में 75 विद्यमान परियोजनाओं में 33.98 प्रतिशत जल भंडार शेष है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 8 प्रतिशत की कमी है। इससे निकट भविष्य में जल संकट उत्पन्न होने की संभावना है। गर्मियों में बढ़ते तापमान और तेजी से हो रहे वाष्पीकरण के कारण जिले को जलापूर्ति करने वाले बांधों में जल भंडारण में उल्लेखनीय कमी आई है।
यवतमाल जिला सिंचाई विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में जिले की 75 परियोजनाओं में केवल 33।98 प्रतिशत जल भंडारण बचा है। जिले में कुल 75 बड़ी, मध्यम और छोटी परियोजनाएं हैं। प्रमुख परियोजनाओं में पूस परियोजना में 36.16 प्रतिशत जल संग्रहण है, अरुणावती परियोजना में 29.58 प्रतिशत तथा बेम्बला परियोजना में 33.73 प्रतिशत जल संग्रहण है।
सात मध्यम आकार की परियोजनाओं में से गोकी में 42.64, वाघडी में 43.77, साईखेड़ा में 39.77, लोअरपुस में 46.07, बोरगांव में 27.33, अडान में 46.78 तथा नवरगांव में 12.82 प्रतिशत जल संग्रहण है। जबकि 65 लघु परियोजनाओं में 27.36 प्रतिशत जल संग्रहण है।
पिछले वर्ष इसी दिन तीन बड़ी परियोजनाओं में जल संग्रहण 42.01 प्रतिशत, सात मध्यम परियोजनाओं में 53।56 प्रतिशत तथा 65 लघु परियोजनाओं में 30.35 प्रतिशत था, अर्थात् कुल 42.12 प्रतिशत जलसंग्रह था।
यवतमाल जिले में पानी के स्रोत सूखे (फोटो नवभारत)
यवतमाल जिले में गर्मी और पानी की कमी का संयोजन कई वर्षों से जारी है। गर्मियों में महिलाओं और पुरुषों को अपना काम छोड़कर पानी लाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। वर्तमान में, 8 निजी टैंकरों के माध्यम से आर्णी और पुसद तहसील के ग्रामीण इलाकों में टैंकर से जलापूर्ति की जा रही है।
दोनों तहसीलों के 15,154 ग्रामीण प्रभावित हुए हैं। इनमें से पुसद तहसील के बुटी (ई) के 1596, वडसद में 1145, रामपुरनगर में 1425, येलदरी में 2100, मधुकर नगर में 4000, शिवनगर में 723, सिंगारवाड़ी में 2236 और आर्णी तहसील के उमरी पठार में 1929 जनसंख्या वाले गांव जल संकट से जूझ रहे हैं। अप्रैल के अंत और मई में जल संकट और भी बदतर हो जाएगा।
दिग्रस शहर में नगर परिषद की उदासीनता की वजह से मोतीनगर, सुभष नगर, अज़ीम कालोनी, रमाई नगर, अंबेडकर नगर में रहने वाले नागरिकों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इन इलाकों में नगर परिषद के नलों से 20 या 25 दिनों में एक बार ही जलापूर्ति करायी जा रही है।
वहीं शहर के मोतीनगर में रहने वाले नागरिकों को एक सार्वजनिक कुएं पर निर्भर रहना पडता है। लेकिन कुंए पर लगायी पानी की मोटर जल जाने से लोगों को पानी निकालना मुश्किल हो रहा है। ठेकेदार मोटर ठीक करने पर ध्यान नहीं दे रहा है। ठेकेदार अपना बिल निकलवाने के लिए नप के चक्कर लगा रहा है। तहसील के कई गांवों में गंभीर पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है।
विशेषकर अरुणावती और नांदगांवन बांध परिसर में आनेवाले इलाकों में पानी की भारी कमी देखने को मिल रही है। अरुणावती प्रकल्प (परियोजना) का लाभ दिग्रस तहसील को नहीं मिल रहा और नागरिकों को पानी के लिए भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। गांवों में पानी के टैंकरों के जरिए आपूर्ति की जा रही है। तहसील के बड़े प्रकल्पों में पानी होने के बावजूद लोगों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा।
दिग्रस तहसील के कई गांवों में मार्च के महीने से ही टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। तहसील के आमला, कलगांव, इसापुर, जैसे कई गांवों में नागरिकों को रोजाना कई किलोमीटर चलकर पानी लाना पड़ रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चे भी पानी के बर्तनों के साथ कतारों में खड़े नजर आते हैं।
शहर में भी जलापूर्ति की स्थिति खराब है। शहर के कुछ हिस्सों में 15 से 20 दिनों में एक बार पानी आ रहा है। जिससे नागरिकों को काफी तकलीफ हो रही है। अरुणावती परियोजना से शहर और तहसील को पानी नहीं मिल रहा है।
हर साल गर्मी के मध्य में होने वाली जलसंकट के कारण पैनगंगा नदी के तटवर्ती 47 गांवों के साथ-साथ पैनगंगा नदी के प्रतिबंधित क्षेत्र के कई गांवों को जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं को एक घड़ा पानी लाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ रहा है। प्रशासन अस्थायी समाधान लागू करके पानी की कमी को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन स्थायी समाधान की आवश्यकता है।
उमरखेड़ तहसील के लोग पिछले कई वर्षों से पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। दीर्घकालिक और ठोस उपाय लागू करने के बजाय प्रशासन केवल प्यास लगने पर ही कुआं खोदने का प्रयास कर रहा है। इस संबंध में जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी उदासीन है। तहसील के दो बड़ी आबादी वाले गांवों ढाणकी और विडूल में जल संकट की स्थिति गंभीर है। यहां महिलाओं को पानी के लिए सचमुच पैदल चलना पड़ता है।
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प्रशासन और जनप्रतिनिधि इससे सहज नहीं दिख रहे हैं। इसलिए इन गांवों के नागरिक गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। अप्रैल महीना अब आधे से ज्यादा बीत चुका है। तापमान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। कुओं और बोरवेलों में पानी की कमी है।
अभावग्रस्त गांवों की महिलाएं एक घड़ा पानी के लिए दर-दर भटक रही है। तहसील के चुरमुरा में ग्रामीणों ने पानी की कमी पर तीव्र आक्रोश व्यक्त करते हुए ग्राम पंचायत के उप सरपंच, सदस्यों और ग्राम पंचायत कर्मचारियों को कार्यालय में तीन घंटे तक कैद कर रखा था।