पितृ पक्ष (सौ.सोशल मीडिया)
Yavatmal News In Hindi: मनुष्य समाज के मृत पूर्वजों को पितृगण कहा जाता है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन से पितृपक्ष आरंभ हो गया है जो कि आगामी 15 दिनों तक चलेगा। इन पंद्रह दिनों तक अपने पूर्वज मृत माता-पिता, दादा और परदादा-दादी को जल से तर्पण अर्पित किया जाता है।
पारंपरिक भारतीय पंचांग के अनुसार पितृपक्ष श्राद्ध 7 सितंबर से प्रारंभ हुआ है। पितृपक्ष का समापन रविवार, 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या यानी अश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को होगा। भाद्रपद पूर्णिमा और अमावस्या से लेकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक की अवधि को ही पितृपक्ष कहा जाता है।
इस पखवाड़े में श्रद्धालु अपने दिवंगत पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि इस कालखंड में किए गए धार्मिक कर्म और दान-पुण्य सीधे पितरों तक पहुंचते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
श्राद्ध व तर्पण इस अवधि में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु जल तर्पण और पिंडदान करते हैं। पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर, उन्हें दान-दक्षिणा दी जाती है। दान-पुण्य अन्न, वस्त्र, तिल, सोना, गौदान जैसे दान विशेष महत्व रखते हैं। इस दौरान व्यक्ति सात्विक भोजन करता है, अहिंसा का पालन करता है और नकारात्मक प्रवृत्तियों से दूर रहता है। इस पखवाड़े के अंतिम दिन सभी पितरों का सामूहिक श्राद्ध किया जाता है। जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, वे इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं।
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मान्यता है कि यह जल तर्पण विधि अपने मृत पूर्वजों के निमित्त की जाती है। पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य सीधे पितरों तक पहुंचते हैं। इससे वे प्रसन्न होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं। ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है।