
शिक्षक पद रिक्त (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Tribal Recruitment: आदिवासी बहुल 13 जिलों के पेसा क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के शिक्षकों के 17 हजार पद रिक्त हैं। इन पदों को शीघ्र भरे जाने की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों ने शिक्षा आयुक्त के पास गुहार लगाई है। शिक्षा आयुक्त द्वारा 24 जुलाई 2023 को शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को भेजे गए पत्र से यह जानकारी सामने आई है कि पेसा क्षेत्र में कुल 17,033 पद रिक्त हैं।
इसी पत्र के आधार पर आदिवासी संगठनों के पदाधिकारियों ने शिक्षा आयुक्त कार्यालय पहुंचकर शिक्षक भर्ती शीघ्र शुरू करने की मांग की है। जिला परिषद के अंतर्गत वर्ष 2022-23 की संचनामान्यता के अनुसार पेसा क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के रिक्त पदों की संख्या 17,033 है। वर्ष 2023 में आयोजित शिक्षक अभियोग्यता एवं बुद्धिमत्ता परीक्षा में पेसा क्षेत्र के कुल 7,166 उम्मीदवार शामिल हुए थे।
इनमें से पहली से पांचवीं तथा छठवीं से आठवीं कक्षा के लिए टीईटी और सीटीईटी पात्रता रखने वाले 4,904 उम्मीदवार थे। इसमें पेसा क्षेत्र के गैर-आदिवासी उम्मीदवार भी शामिल हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में विद्यार्थियों का शैक्षणिक नुकसान न हो, इस उद्देश्य से तत्कालीन शिक्षा आयुक्त ने मानधन/कॉन्ट्रैक्ट आधार पर 13 आदिवासी बहुल जिलों में 1,544 आदिवासी उम्मीदवारों की नियुक्ति की थी।
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इनमें टीईटी, सीटीईटी उत्तीर्ण उम्मीदवारों के साथ-साथ डीएड और बीएड उम्मीदवारों का भी समावेश है। हालांकि ये शिक्षक पिछले एक वर्ष से मानधन पर ही कार्यरत हैं। पात्रता उत्तीर्ण होने के बावजूद उन्हें अब तक स्थायी नियुक्ति नहीं मिली है। कुछ जिलों में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर कार्यरत आदिवासी उम्मीदवारों को हटाए जाने की जानकारी भी शिक्षा आयुक्त और शिक्षा उपसंचालक के ध्यान में लाई गई है।
राज्य के 36 जिलों में से 13 जिले आदिवासी बहुल हैं। इनमें ठाणे, पालघर, नाशिक, जलगांव, धुले, नंदुरबार, नांदेड़, यवतमाल, अमरावती, गडचिरोली, चंद्रपुर, पुणे और अहमदनगर शामिल हैं। इन जिलों के अनुसूचित (पेसा) क्षेत्रों में आदिवासी शिक्षक उम्मीदवारों की भर्ती अटकी हुई है।
यदि टीईटी और सीटीईटी उत्तीर्ण अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होते हैं, तो पेसा जिलों में अनुसूचित जनजाति के डीएड और बीएड उम्मीदवारों को कॉन्ट्रैक्ट आधार पर नियुक्त किया जाए और उन्हें टीईटी उत्तीर्ण करने के लिए पांच वर्ष का समय दिया जाए ऐसी भी मांग आदिवासी संगठनों की ओर से की गई है।






