सेना के किले की चाबी आएगी किसके पास? (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Yavatmal Politics: दो दशक पहले कांग्रेस के हाथों से छीना गया दारव्हा विधानसभा का किला आज भी सेना के पालकमंत्री संजय राठोड़ के कब्जे में कायम है। इस क्षेत्र की दारव्हा, दिग्रस और नेर नगरपालिकाओं के लिए 2 दिसंबर को मतदान होना है। अब तक इन तीनों पालिकाओं की सत्ता की चाबियां पालकमंत्री राठोड़ के हाथों में ही रही हैं, लेकिन इस बार पूरा ‘चाबियों का गुच्छा’ हथियाने के लिए कांग्रेस और उबाठा सेना पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर गई है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे और उबाठा सेना के सांसद संजय देशमुख दोनों की संयुक्त ताकत पहली बार पालकमंत्री राठोड़ के विरुद्ध खड़ी हुई है। पालकमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आने वाली ये तीनों नगरपालिकाएँ अब पूरे जिले की राजनीति का केंद्रबिंदु बन गई हैं, क्योंकि यहाँ दो संजयों की सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
नेर, दारव्हा और दिग्रस तीनों नगरपालिकाएं इन नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी हैं। विधानसभा और लोकसभा में साथ-साथ चुनाव लड़ने वाली शिंदे सेना और भाजपा इस बार नगरपालिका चुनावों में अलग-अलग मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस और उबाठा सेना पहले की तरह इस चुनाव में भी एक साथ हैं।
नेर, दारव्हा और दिग्रस में माणिकराव ठाकरे और सांसद संजय देशमुख संयुक्त प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर पालकमंत्री राठोड़ की मजबूत कार्यकर्ता फौज घर-घर अभियान में जुटी हुई है। भाजपा ने भी नगराध्यक्ष पद के लिए तैयारी तेज कर दी है। इसके चलते अधिकांश क्षेत्रों में शिंदे सेना-महाआघाडी-भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला संभव माना जा रहा है।
इन तीनों नगरपालिका क्षेत्रों में अल्पसंख्यक व बौद्ध मतदाताओं की बड़ी संख्या होने के कारण सभी दलों की नजरें इन वोट बैंक पर टिकी हुई हैं। हालांकि इस बार मैदान में एमआईएम और वंचित बहुजन आघाडी भी उतर चुकी है, जिससे सभी दलों की रणनीति में गणित बिगड़ने की आशंका है।
पिछले विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाडी की ओर से नेर के पवन जयसवाल का नाम लगभग तय हो चुका था और सूची भी जारी हो गई थी। लेकिन 24 घंटे के भीतर कांग्रेस ने यह सीट उबाठा सेना से वापस लेने का आग्रह किया और टिकट बदल दिया। इस घटनाक्रम से हुए राजनीतिक अपमान का हिसाब अब चुकता होने की संभावना बताई जा रही है। वर्तमान में पवन जयसवाल भाजपा–शिंदे सेना गठबंधन में हैं और उनकी पत्नी इस बार नगराध्यक्ष पद की उम्मीदवार हैं।
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चुनाव घोषित होने से पहले ही पालकमंत्री संजय राठोड़ ने शिंदे सेना में बड़े पैमाने पर पक्ष प्रवेश करवाए। विरोधी दलों के कई नगरस्तरीय पदाधिकारियों के शामिल होने से नगरपालिका चुनाव को लेकर उनका वोट बैंक मजबूत होने की चर्चा है।
दूसरी ओर महाआघाडी में कई पुराने कार्यकर्ताओं के टिकट कटने से नाराजगी व्याप्त है। स्थानीय पदाधिकारियों को किनारे कर टिकटों का वितरण सांसद और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के माध्यम से हुआ। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह ‘इनकमिंग’ और ‘कटिंग’ की राजनीति किसके पक्ष में जाती है।