
घरकुल पर रेत का महासंकट (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Yavatmal Gharkul News: योजनाओं के तहत गरीब परिवारों को घरकुल मंजूर होता है। इसके लिए एक से डेढ़ लाख रुपये तक अनुदान राशि भी किस्तों में मिलती है। मगर इसी एक लाख के घरकुल के लिए गरीब लाभार्थी को केवल रेत खरीदने में ही 25 से 50 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं। इसके पीछे मुख्य कारण सरकारी नीति की खामी है। पिछले कुछ दिनों से राज्य में रेत का अवैध कारोबार धड़ल्ले से जारी है। ऐसी स्थिति में जिसे भी घर बनाना है, उसे रेत तस्करों के दरवाजे पर ही जाना पड़ता है। सरकारी योजना से गरीब को घरकुल मंजूर होते ही रेत मिलना सबसे बड़ा संकट बन जाता है। यही समस्या देखते हुए सरकार ने नई रेत नीति लागू की। इस नीति के अनुसार घरकुल लाभार्थी को पांच ब्रास रेत मुफ्त देने का निर्णय किया गया।
लेकिन असली गड़बड़ यही है। रेत भले मुफ्त हो, पर उसे घाट से उठाकर घर तक लाने की जिम्मेदारी गरीब पर ही डाल दी गई है। अधिकांश घाटों पर तस्करों का दबदबा है। ऐसे में जब गरीब लाभार्थी मुफ्त रेत लाने की कोशिश करता है, तो उसे अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना, मोदी आवास योजना, रमाई, आदिम, कोलाम और शबरी आवास जैसी योजनाएं लागू हैं। इनके माध्यम से 64 हजार से अधिक लाभार्थियों को घरकुल मंजूर हुए हैं। अधिकांश को पहली किस्त भी मिल चुकी है, मगर सवाल यही है। रेत कहाँ से लाएं?
जिले में रेत तस्कर मनमानी वसूली कर रहे हैं। एक डंपर रेत की कीमत 25 हजार रुपये से भी अधिक हो चुकी है। इतने महँगे भाव पर रेत खरीदना गरीब के लिए असंभव है। सरकार ने मुफ्त रेत देने का निर्णय तो लिया, लेकिन ट्रैक्टर भाड़ा, मजदूरी और परिवहन खर्च लाभार्थी वहन नहीं कर पा रहे हैं। इसी कारण अनुदान की रकम मिलने के बावजूद कई लोग अपना घरकुल पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
तंग अनुदान और मुफ्त रेत घर तक लाने में अधिक खर्च इन दोनों कारणों से कई लाभार्थियों को मजबूरी में फिर से रेत तस्करों का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। जो महँगा खर्च उठा सके, उन्होंने तस्करों से रेत खरीदी। जो नहीं उठा सके, उन्हें घरकुल अधूरा छोड़ना पड़ा। इसलिए सरकार की अच्छी नीति में एक और कदम जोड़ना आवश्यक है।पांच ब्रास मुफ्त रेत लाभार्थियों के घर तक पहुँचाकर दी जाए। अब देखना यह है कि यह मांग सरकार तक कौन-सा जनप्रतिनिधि पहुँचाता है।
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जिले के अधिकतर रेत घाटों पर तस्करों का कब्जा है। ऐसे में वे घरकुल लाभार्थियों के नाम का दुरुपयोग भी कर रहे हैं। राजस्व विभाग की टीम पूछताछ करे तो उनके मजदूर निर्भयता से कहते हैं कि “हम घरकुल लाभार्थी के लिए रेत ले जा रहे हैं।” इसके लिए आसपास के किसी गरीब लाभार्थी का नाम धमकाकर इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कई स्थानों पर तस्करों और राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से यह पूरी प्रणाली चल रही है।






