मिट्टी के दीये ‘आउटडेटेड’, (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Yavatmal District: दिवाली उजाले का त्योहार है, लेकिन इस साल मिट्टी के दीयों को ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिल रही है। नागरिक अब अधिक पैसे खर्च करके फैंसी दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके चलते यवतमाल जिले में इस साल 25 लाख रुपये से अधिक का कारोबार होने का अनुमान है। हालांकि, पारंपरिक मिट्टी के दीयों को बनाने वाले कुम्हार अभी भी ग्राहक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विठ्ठल वाघ की कविता का यह अंश— ‘आमी जलमलो मातीत, किती होणार का माती?, खापराच्या या दिव्यात, कधी पेटणार वाती?’ कुम्हारों के दिल की पीड़ा को बयां करता है।
मिट्टी के दीये फिलहाल 30 रुपये प्रति दर्जन में उपलब्ध हैं। लेकिन ग्राहक महंगे फैंसी दीयों के लिए अधिक पैसे देने को तैयार हैं। इससे कुम्हारों को लाभ तो होता है, लेकिन मिट्टी के दीयों की तुलना में कम। दिये विक्रेता संदीप बारवे ने बताया कि ये फैंसी दीये सीधे सूरत (गुजरात) से और मध्य प्रदेश से आयातित चीनी मिट्टी के दीये हैं। इन्हें वे 40 रुपये एक दिया खरीदते हैं और 45 रुपये में बेचते हैं। इसलिए मुनाफा केवल 5 रुपये प्रति दीप है।
वहीं, मिट्टी के दीयों को मेहनत से बनाने पर अच्छा मुनाफा और संतोष दोनों मिलता है। लेकिन अब ग्राहक दिवाली पर दीये जलाने की बजाय अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करना पसंद कर रहे हैं। इसके कारण महंगे फैंसी दीयों को घर के बाहर सजाकर दिखाने का चलन बढ़ गया है। इससे मिट्टी के दीयों की कला को नजरअंदाज किया जा रहा है।
कुम्हार पूछ रहे हैं-“मिट्टी में हमारी जिंदगी के उजाले कब चमकेंगे?” इसके अलावा, जनरल स्टोर्स में विभिन्न फैंसी दीयों की बिक्री भी शुरू हो गई है। आकर्षक पैकिंग वाले ये दीये महंगे हैं। इसमें मोम के फैंसी दीये 160 रुपये प्रति दर्जन में बिक रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स दुकानदारों ने भी बिजली वाले महंगे दीये लाए हैं, जो घर की सजावट में शौकीनों को आकर्षित कर रहे हैं। फिर भी, पूजन और पारंपरिक महत्व के लिए मिट्टी के दीये ही अहम हैं।
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यवतमाल के दीये विक्रेता संदीप बारवे ने कहा कि “पहले दिन जब मैंने दुकान लगाई थी, तो 2 हजार रुपये का कारोबार हुआ। हमारे जिले में लगभग 1,000 विक्रेता हैं। लेकिन इस साल कुम्हारों से दीयों की खरीद में कम रुचि है। महिला वर्ग फैंसी दीयों के लिए अधिक इच्छुक है।”