30 साल बाद फिर खिले दोस्ती के रंग
Yavatmal News: समय कितना भी आगे बढ़ जाए, लेकिन सच्ची दोस्ती कभी धुंधली नहीं होती। यह बात 10वीं कक्षा के मित्रों ने अपने अनुभव से साबित कर दी। स्कूल के दिनों में साथ पढ़े, हंसे, झगड़े और सपने देखे हुए ये मित्र जीवन की अलग-अलग राहों पर निकल गए, मगर मन की डोर हमेशा जुड़ी रही। तीस साल बाद वही चालीस दोस्त एक बार फिर एकत्र हुए और स्कूल की उसी बेंच पर बैठकर पुरानी यादों को नए रंगों में ताज़ा किया।
हंसी-मज़ाक, भावनाएं, किस्से और आंखों में छलकता आनंद सब कुछ वैसा ही था जैसे उन सुनहरे दिनों में। डॉक्टर, प्राध्यापक, अधिकारी, किसान, व्यापारी सभी ने जीवन में अलग-अलग रास्ते चुने, पर इस स्नेह मिलन ने सभी राहों को फिर एक जगह ला दिया। समय बदल गया, उम्र बढ़ गई, पर दोस्ती की वह स्कूल वाली मासूमियत आज भी उतनी ही ताज़ा महसूस हुई।
सन 1995 की 10वीं कक्षा के इस स्नेह मिलन की योजना कैलास दूधकोहले, रंजना सारवे, इकबाल सैयद, सूरज महाजन और कांचन ठाकरे को सूझी। सबसे पहले इन मित्रों ने आपस में संपर्क कर कार्यक्रम की रूपरेखा तय की। फिर सभी ने मिलकर पुराने सहपाठियों के मोबाइल नंबर जुटाने का कार्य शुरू किया। कुछ ही दिनों में सभी विद्यार्थियों तक सूचना पहुंच गई। इन प्रयासों से आदर्श हाईस्कूल, मारेगांव की 1995 बैच के सभी मित्र एकत्र हुए और शहर के बदकी भवन में स्नेह मिलन का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षक चुंबले ने की, जबकि प्रमुख अतिथि के रूप में विठ्ठलराव चौधरी, मारोतराव वरारकर, शामराव बोढाले, जिजाताई वरारकर, गीता पांडे तथा कर्मचारी रांगनकर, वटे, दुमोरे और पाल उपस्थित रहे। अतिथियों का शाल, श्रीफल और स्मृति चिन्ह देकर सत्कार किया गया। कार्यक्रम का संचालन मनोज गाडवे ने किया, जबकि प्रस्तावना और आभार प्रदर्शन इकबाल सैयद ने किया। बीच-बीच में अतिथियों के प्रेरक भाषणों ने समारोह को भावनात्मक रंग दिया।
कार्यक्रम में हैदराबाद, वर्धा, घाटंजी, यवतमाल, वरोरा, पुलगांव आदि स्थानों से मित्र पहुंचे। जब सभी ने अपने पुराने स्कूल के कक्ष में कदम रखा, तो ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो। जिन बेंचों पर कभी बैठकर पढ़ाई की थी, वहीं फिर बैठकर पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। आज कई सहपाठी प्राध्यापक, वरिष्ठ व्याख्याता, नौकरीपेशा, व्यापारी या किसान हैं, परंतु एक साथ आने की खुशी सभी के चेहरों पर झलक रही थी।
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कार्यक्रम की शुरुआत में स्कूल की छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। सुबह की ठंडी हवा में जब घंटी बजी, तो बच्चे दौड़ते हुए स्कूल के मैदान में पहुंचे — मानो स्कूल की दीवारों को फिर से जीवन मिल गया हो। सभी विद्यार्थी अनुशासनपूर्वक पंक्ति में खड़े हुए; उनके चेहरों पर खुशी, उत्सुकता और अपनापन झलक रहा था। सभी ने मिलकर राष्ट्रगान प्रस्तुत किया, और उस पल पूरा परिसर देशभक्ति के भाव से भर गया।
इसके बाद कक्षाओं में उपस्थिति ली गई। शिक्षकों ने विद्यार्थियों को स्नेहपूर्वक संबोधित करते हुए कहा -“स्कूल सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि हमारी दूसरी मां है।” यह सुनकर कई विद्यार्थियों की आंखें नम हो गईं।
इसके बाद मैदान में खेलकूद की धूम मच गई। खो-खो, लंगड़ी और अन्य खेलों में सभी ने खूब आनंद लिया। जयघोष, उड़ती धूल और बच्चों की खिलखिलाहट ने वातावरण को फिर से हंसी से भर दिया।