लता कोरडे (सौजन्य-नवभारत)
Washim News: वाशिम जिले के ग्राम भरजहांगीर की निवासी लता कोरडे ने विकलांगता को मात देकर अपने जीवन को एक नई दिशा दी है। आज वे अंतरराष्ट्रीय संस्था वाटरएड में संभाजीनगर ज़िले के फुलंबरी तहसील में सामुदायिक सुविधाकर्ता के रूप में कार्यरत हैं, जहां वे तीन गांवों में जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य के मुद्दों पर परियोजनाएं चला रही हैं। उन्होंने सीएसआर निधि से अब तक 35 लाख का कार्य पूर्ण किया है और 30,000 मासिक वेतन, भत्तों व सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर जीवन जी रही हैं।
लता के जीवन में संघर्ष की शुरुआत मात्र चार वर्ष की आयु में हुई, जब पोलियो की खुराक के बाद गलत इलाज के कारण उनके दोनों पैर अक्षम हो गए। उनकी मां ने उन्हें चलने के लिए प्रेरित किया, लेकिन आठ वर्ष की आयु में सांप के काटने से मां की मृत्यु हो गई। इसके बाद लता के जीवन में दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा।
स्कूल घर से दो किलोमीटर दूर था। भाई-बहन कभी गोद में उठाकर ले जाते, लेकिन अधिकतर उन्हें रेंगकर स्कूल जाना पड़ता। समाज में जागरूकता की कमी थी, कोई मदद नहीं करता था। छठी कक्षा तक इसी हालत में पढ़ाई की। बाद में एक दानदाता की मदद से मिली तिपहिया साइकिल ने उनकी राह आसान की। उन्होंने 2012 में बारहवीं और 2016 में बी।ए। व एम।एस।डब्ल्यू। की पढ़ाई पूरी की।
2023 में उन्हें एक शोरूम में 6,000 वेतन की पहली नौकरी मिली, जिसके लिए उन्हें प्रतिदिन 60 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। इसी दौरान महिला आर्थिक विकास निगम की स्पार्क परियोजना से जुड़कर उन्हें दिव्यांग समावेशन का कार्य मिला। युगांडा से आए दृष्टिहीन प्रशिक्षक से प्रेरणा लेकर उन्होंने रिसोड सीएमआरसी में दिव्यांग प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया। 36 गांवों में 3500 लोगों को जागरूक किया। 500+ दिव्यांगों को यूडीआईडी कार्ड दिलवाए।
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महिलाओं को ईडीपी प्रशिक्षण प्रदान किया। ग्राम पंचायत स्तर पर योजनाओं का लाभ दिलाया। इस परियोजना ने उन्हें जनता के सामने बोलने का साहस और नेतृत्व कौशल प्रदान किया। अंतरराष्ट्रीय अध्ययन दौरे में उन्होंने अपने कार्य प्रस्तुत किए। समाज कल्याण विभाग की मदद से खरीदी गई स्कूटी उनकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनी।
लता ने नांदेड़ विधानसभा में दिव्यांगजनों को साइकिल वितरण कार्यक्रम में भाग लिया। जनवरी 2025 में उन्हें वाटरएड संस्था द्वारा सामुदायिक सुविधाकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया। आज वे अपने दृढ़ संकल्प के बल पर न केवल अपने परिवार का आर्थिक सहारा बनी हैं, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनका सशक्त संदेश: दिव्यांग व्यक्ति नहीं, तो जिद्दी शरीर यही असली पहचान है।