वफादार नेता छोड़ेंगे शरद पवार का साथ। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
सोलापुर: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के जिला अध्यक्ष पद से हटाए गए वरिष्ठ नेता शरद पवार के विश्वस्त सहयोगी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष बलिराम काका साठे ने सांसद धैर्यशील मोहिते पाटिल पर जुबानी हमला करने के बाद पार्टी छोड़ने का फैसला किया है। जिला अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद बुलाई गई समर्थकों की बैठक में इस फैसले की घोषणा की गई, जिससे शरद पवार को सोलापुर में एक और झटका लगने की संभावना है।
बलिराम साठे शरद पवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। साठे ने आज तक कभी भी पवार से दूरी नहीं बनाई। जब जिले के वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी मुश्किल में थी, तब काका साठे ने जिला अध्यक्ष का पद संभाला था। साठे विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी नेतृत्व के प्रति वफादार रहे।
शरद चंद्र पवार की पार्टी एनसीपी के जिला अध्यक्ष पद से 2 दिन पहले ही बलिराम साठे को हटा दिया गया है। उनकी जगह मोहिते पाटिल के समर्थक पूर्व जिला परिषद सदस्य वसंतराव देशमुख को नियुक्त किया गया है। साठे को अपमानजनक तरीके से जिला अध्यक्ष पद से हटाए जाने पर उनके समर्थकों ने कड़ी नाराजगी जताई है। इसलिए शनिवार को समर्थकों की बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
उत्तर सोलापुर तालुका के वडाला में हुई बैठक में बलिराम काका साठे के साथ पार्टी द्वारा किए गए व्यवहार पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की गई। खुद बलिराम साठे ने भी पार्टी द्वारा लिए गए फैसले पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि अगर वह जिला अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना चाहते थे, अगर पार्टी ने हमें विश्वास में लेकर बताया होता, तो हम दे देते। अगर पार्टी के नेताओं ने हमारे साथ इस्तीफे पर चर्चा की होती, तो हम दे देते। मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो पद से चिपके रहते हैं।
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इस बीच काका साठे और उनके समर्थकों ने पार्टी के फैसले पर नाराजगी जाहिर की और एनसीपी शरद चंद्र पवार पार्टी छोड़ने के साफ संकेत दिए। कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ने का कड़ा रुख भी अपनाया। अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है कि किस पार्टी में शामिल होना है। हालांकि समर्थकों ने खुलकर कहा कि एनसीपी शरद चंद्र पवार पार्टी छोड़ने का फैसला पक्का है।
काका साठे के समर्थकों ने कहा है कि वे उनके साथ हैं और उन्हें तय करना चाहिए कि उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल होना है या एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में। अब समर्थकों का ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि काका साठे किस पार्टी में शामिल होने का फैसला करते हैं। आगामी निकाय चुनाव के मुहाने पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पार्टी के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है।