पानी की टंकी पर चढ़े, सतारा सुसाइड केस में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर बवाल, गांव वालों का फूटा गुस्सा
Satara Lady Doctor Suicide Case: महाराष्ट्र के सतारा में हुई लेडी डॉक्टर की आत्महत्या मामले को लेकर उसके गांव बीड के लोग बेहद नाराज़ हैं। बीड ज़िले के वडवानी तालुका के कवडगांव में ग्रामीण मृतक डॉक्टर के लिए न्याय की मांग करते हुए पानी की टंकी पर चढ़ गए। आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए उन्होंने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया। गांव वालों की यह भी मांग है कि इस मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र SIT गठित की जाए। बुधवार को यवतमाल ज़िले में भी प्रदर्शनकारियों ने बीएसएनएल टॉवर पर चढ़कर विरोध जताया था।
मृतक महिला डॉक्टर के भाई का आरोप है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में “मृत्यु का सही समय” जानबूझकर नहीं लिखा गया है। उनका कहना है कि जांच अधिकारी द्वारा बताए गए मृत्यु समय में जानबूझकर बड़ी गलती की गई — 11:50 AM की जगह 11:50 PM दर्ज किया गया। उन्होंने कहा कि जांच संदिग्ध लग रही है। चूंकि मामले में पुलिस अधिकारी ही आरोपी हैं, इसलिए SIT जांच आवश्यक है।
मृतक डॉक्टर के भाई ने कहा, “हमारे गांव के लोग अपने जीवन की परवाह किए बिना पानी की टंकी पर चढ़कर इस आंदोलन और संघर्ष में हमारा साथ दे रहे हैं। बीड का कवडगांव गांव और महाराष्ट्र की पूरी जनता इस लड़ाई में हमारे साथ है। मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं और आगे भी हमारे संघर्ष में साथ देने की अपील करता हूं।” उन्होंने कहा कि पुलिस की जांच पूरी तरह संदिग्ध है, इसलिए स्वतंत्र SIT गठित की जानी चाहिए।
उन्होंने बताया, “जब हम सतारा गए, तो जांच अधिकारी डीएसपी विशाल खांबे ने हमें पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दिखाई। उसमें केवल ‘कॉज़ ऑफ़ डेथ’ यानी मृत्यु का कारण ‘एस्फ़ेक्सिया ड्यू टू हैंगिंग’ लिखा था, जो कि शव देखकर तुरंत समझा जा सकता है।”
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उन्होंने कहा, “फॉरेंसिक एक्सपर्ट से पोस्टमॉर्टम करवाने का मुख्य कारण यह था कि हमें ‘टाइम सिंस डेथ’, यानी मृत्यु का सही समय पता चले। इसके लिए हमने खास तौर पर आग्रह किया था, लेकिन रिपोर्ट में वह समय दर्ज नहीं है। जब हमने इस पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि दो दिन में बताएंगे। अगर रिपोर्ट आने में छह दिन लगते हैं, तो क्या छह दिन में सिर्फ़ इतना ही लिखा जा सकता था जो पहले से स्पष्ट था? मृत्यु का समय आखिर इसमें दर्ज क्यों नहीं किया गया?”