महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती विशेष (सौजन्य-पिनटरेस्ट)
मुंबई: महिलाओं के लिए भारत में शिक्षा पाना आज बेहद आसान है। लेकिन पुराने जमाने में लड़कियों और महिलाओं को पढ़ने-लिखने का कोई हक नहीं था। आज जो महिलाएं पढ़ाई-लिखाई कर पा रही है ये एक महाराष्ट्र के एक महत्वपूर्ण इंसान की देन है। जी हां, अब तक महिलाओं की शिक्षा पर हो रही बात से आप समझ ही गए होंगे कि हम किस की बात कर रहे है। जी हां, हम बात कर रहे है ज्योतिबा फुले की। आज 11 अप्रैल तारीख है, जो कि महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती तिथी है।
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा के कटगुन गांव में हुआ था। ज्योतिबा फुले वे इंसान है, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए बड़े काम किए। इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी ही पत्नी सावित्रीबाई फुले से की। इस बारे में तो सभी जानते है। लेकिन उनका योगदान केवल यही तक सीमित नहीं है। ज्योतिबा फुले ने न केवल महिलाओं के लिए बल्कि समाज के लिए भी कई कार्य किए और समाज को एक नई दिशा दी।
महात्मा ज्योतिबा फुले ने छुआछूत, अंधविश्वास, धार्मिक रूढ़िवाद, पुरोहितवाद आदि का लगातार विरोध किया। इसी के साथ उन्होंने 1 जनवरी, 1848 को अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर पुणे के भिड़े वाड़ा में केवल लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी रूप से संचालित स्कूल खोला। इस स्कूल में वे दोनों कार्य करते थे, जहां सावित्रिबाई फुले लड़कियों को पढ़ाया करती थी।
अब तक महात्मा ज्योतिबा फुले यह बात समझ चुके थे कि सदियों से चली आ रही इन कुरीतियों को वे अकेले नहीं हटा पाएंगे। इसके लिए संगठित होना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने वर्ष 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ नाम की संस्था का गठन किया। इसका अर्थ था ‘सत्य के साधक’। इस संगठन के जरिये ज्योतिबा फुले महाराष्ट्र में निम्न वर्गों तक पहुंचे और उन्हे समान सामाजिक और आर्थिक अधिकार पाने के लिए उनमें जागरूकता फैलाई। सत्यशोधक समाज का विस्तार आज भी मुंबई व पुणे के गांवों तक दिखाई देता है। उनकी इस पहल ने राज्य में क्रांति लाने का काम किया।
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महात्मा ज्योतिबा फुले शुरू से ही छत्रपति शिवाजी महाराज से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने आगे चलकर रायगढ़ का दौरा किया था। रायगढ़ जाकर महात्मा फुले ने ही पत्थर व पत्तियों के ढेर तले दबी शिवाजी महाराज की समाधि को खोज निकाला था। इस समाधि की उन्होंने सफाई और फिर उसकी मरम्मत करवायी थी। इतना ही नहीं बाद में महात्मा फुले ने शिवाजी महाराज पर एक जीवनी भी लिखी, जिसे पोवाड़ा (महाराष्ट्र का प्रमुख लोक गायन, जिसमें शिवाजी महराज के युद्ध कौशल का वर्णन है) भी कहा जाता है।