प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत (फाइल फोटो)
नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा अहंकार पर की गई कठोर टिप्पणी ने सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। इससे भारतीय जनता पार्टी में बेचैनी है। सरकार को इस तरह सीधे तौर पर कटघरे में खड़ा करने वाले बयान के अलग-अलग मायने भी निकाले जा रहे हैं। पिछले 10 वर्षों से केंद्र में सत्ता में रही भाजपा के खिलाफ कोई आलोचना नहीं हुई। उन्होंने सरकार के साथ-साथ विपक्षी दलों को निशाना बनाया और आलोचना की। अब देखने वाली बात यह है कि भागवत के इस बयान का सरकार पर क्या असर होगा।
संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन पर भागवत के इस बयान से हड़कंप मच गया है। चूंकि नागपुर संघ का मुख्यालय है, इसलिए यहां से दिया गया संदेश बीजेपी में अहम माना जाता है। इस बात को लेकर काफी भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है कि स्वयंसेवक और बीजेपी कार्यकर्ता इस बयान की क्या व्याख्या करते हैं। बताया जा रहा है कि सरसंघचालक ने सेवक, अहंकार, मर्यादा आदि शब्दों का इस्तेमाल कर मोदी सरकार पर हमला बोला है। चूंकि संघ की सोच की केंद्र में सरकार थी, इसलिए कई बुरी स्थितियों में भी सरसंघ नेताओं ने सरकार पर ध्यान नहीं दिया। वे अक्सर अच्छी बातों का प्रचार करते थे और उन्हें सलाह देते थे।
हालांकि इस बार सेवकों की ओर से यह कहते हुए देखा गया है कि इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है। इतना ही नहीं कहा जा रहा है कि मणिपुर को लेकर दिए गए बयान ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया गया है क्योंकि पिछले साल से ही मणिपुर धधक रहा है। इस अशांति को खत्म करने की जिम्मेदारी किसकी है? उन्होंने ऐसा सवाल भी उठाया। कहा जा रहा है कि सरसंघचालक ने कहीं न कहीं इस बात पर अंगुली उठाई है कि चुनाव से पहले और सरकार आने के बाद भी मोदी सरकार ने मणिपुर को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
कई लोगों की नजर इस पर होगी कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में संघ के साथ सौहार्द्र कितने समय तक कायम रहेगा। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कितना भी दावा करें कि बीजेपी आत्मनिर्भर और मजबूत हो गई है लेकिन कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार और बीजेपी संघ के फैसले से आगे नहीं बढ़ती। हालांकि बीजेपी कार्यकर्ता दबी जुबान से ये भी मान रहे हैं कि सरसंघचालक की आलोचना के कारण बीजेपी में अंदरूनी हलचल बढ़ गई है।
हालांकि यह चुनाव 2 दलों के बीच सत्ता की लड़ाई है लेकिन नेताओं ने इसमें संघ को फंसाने के लिए विपक्षी दलों को भी नहीं बख्शा। संघ को चुनाव प्रचार में लाकर गलतफहमी पैदा की गयी। साथ ही इस बात की भी आलोचना की गई कि तकनीक की मदद से झूठ फैलाया गया। विपक्षी दल को सर्वसम्मति और धैर्य से काम लेने की सलाह उन्होंने दी। सरसंघचालक यह कहना नहीं भूले कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनाव में मर्यादाओं का पालन करना जरूरी है।