
पीएमपीएमएल (सौ. सोशल मीडिया )
Pune News In Hindi: पुणे, पिंपरी-चिंचवड और पीएमआरडीए क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन का मुख्य आधार, पुणे महानगर परिवहन महामंडल (पीएमपीएमएल) की बस सेवा की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।
शहर की इस ‘लाइफलाइन’ को अब लगातार हो रहे ‘ब्रेकडाउन’ का गंभीर रोग लग गया है। चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि अप्रैल से नवंबर 2025 के इन आठ महीनों की अवधि में पीएमपी की कुल 14,851 बसें बार-बार खराब होकर सड़क पर बंद पड़ी हैं।
इसका औसत निकाला जाए तो, पीएमपी की बसें रोजाना 61 बार अचानक बंद हो जाती हैं, जो कि एक बेहद चिंताजनक आंकड़ा है। ब्रेकडाउन की इन घटनाओं में किराए पर ली गई बसों की संख्या सबसे अधिक है, जो 11,014 बार खराब हुई। पीएमपी के खुद के स्वामित्व वाली बसें भी 3,837 बार बंद पड़ीं।
इन बार-बार होने वाले ब्रेकडाउन के कारण अपनी दिनचर्या की योजना बनाने वाले सामान्य यात्रियों को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। कार्यालय, स्कूल, कॉलेज या अस्पताल जाने वाले नागरिकों के लिए समय पर गंतव्य तक पहुंचना मुश्किल हो गया है।
लगातार खराबी, अचानक बस बंद हो जाना, टायर पंचर, इजन गरम होना, वायर कटना और पावर स्टीयरिंग ऑयल लीक होने जैसे कारणों से बस में आग लगने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। अप्रैल में स्वारगेट से खानापुर जाने वाले मार्ग पर एमआईटी गेट के पास एक पीएमपी बस के इंजन में आग लग गई थी और पूरी बस जलकर खाक हो गई थी।
गनीमत रही कि इसमें किसी को चोट नहीं आई थी। इसके अलावा, बस का संतुलन बिगडने से दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ती हुई दिख रही है। यात्रियों की पुरजोर माग है कि रूट पर बस भेजने से पहले पीएमपी के प्रबंचकों को बस की प्राथमिक जांच करके ही उसे भेजना चाहिए, ताकि शहर की इस परिवहन सेवा पर यात्रियों का विश्वास बना रहे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
जो गाड़ियां पुरानी हो चुकी हैं, उन्हें हम स्क्रैप कर रहे है। बेड़े में 1000 नई गाड़ियां शामिल हो रही हैं और ब्रेकडाउन के अनुपात को कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे है। बहुत जल्द यह अनुपात कम होता हुआ दिखाई देगा।
– राजेश कुदले, मुख्य अभियंता, पीएमपी
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बस के अचानक बंद होने से हमें असुविधा 66 होती है। अगर कोई महत्वपूर्ण काम हो और बस अचानक बंद हो जाए तो हम समय पर काम नहीं कर पाते। वैकल्पिक व्यवस्था भी जल्दी नहीं हो पाती। इसलिए पीएमयी प्रशासन को इस पर – उपाय करना चाहिए।
– प्रदीप कालभोर, यात्री






