
लोणावला नगर परिषद (सौ. सोशल मीडिया )
Pimpri News In Hindi: लोणावला की दो सीटों के परिणामों ने पूरे शहर की धड़कनें रोक दी हैं। 2 दिसंबर को मतदान समाप्त होने के बावजूद, लोणावला की विशेष दो सीटों पर 20 दिसंबर को होने वाले विलंबित मतदान के चलते, चुनावी नतीजों की घोषणा 21 दिसंबर तक टाल दी गई है।
मतदान और अंतिम परिणाम के बीच का यह 19 दिनों का लंबा अंतराल लोणावला में एक चुनावी मिस्ट्री बन चुका है। बता दें कि लोणावला नगर परिषद का सामान्य चुनाव 2 दिसंबर को संपन्न हो गया, लेकिन यह चुनाव इस बार विकास के मुद्दों के बजाय पैसे के बोलबाले के कारण ज्यादा चर्चा में रहा।
उम्मीदवारों ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इस चुनाव में पानी की तरह पैसा खर्च किया। हैरानी की बात यह है कि कुछ उम्मीदवार गर्व से यह बता रहे हैं कि उन्होंने सीट जीतने के लिए प्लॉट बेच दिए, दुकानें बेच दीं और करोड़ों रुपये खर्च कर दिए।
इसके बावजूद, जब उनसे जीत के अंतर के बारे में पूछा जाता है, तो वे अभी भी अनिश्चितता जाहिर करते हैं। उन्हें लगता है कि मतदाताओं ने मतदान पेटी के अंदर क्या किया, इसका खुलासा 21 दिसंबर को नतीजों के दिन ही होगा,
गौरतलब है कि शहर का हर नुक्कड़ चुनावी नतीजों की गर्मागर्म बहस का अखाड़ा बना हुआ है। एक ओर, समर्पित कार्यकर्ता अपनी जीत को लेकर पूर्णतः आश्वस्त हैं, वहीं दूसरी ओर, लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने वाले उम्मीदवार भी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह निश्चित नहीं दिख रहे हैं।
करोड़ों के भारी-भरकम खर्च के बावजूद यह ‘अनिश्चितता’ ही इस चुनाव का सबसे बड़ा आकर्षण बन गई है, जिसे पैसे के प्रभाव से आया एक अप्रत्याशित ‘ट्विस्ट’ माना जा रहा है। लोणावला बेसब्री से 21 दिसंबर का इंतजार कर रहा है, जब यह पर्दा उठेगा।
इस चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए महिलाओं को भगवान के दर्शन के बहाने घुमाना, उनसे शपथें दिलवाना, और उन्हें उपहार तथा साड़ियों का वितरण जैसे कई तरीके अपनाए गए। जनता के स्थानीय सवालों को हल करने के बजाय उन्हें तरह-तरह के लालच दिखाकर अस्थायी रूप से अपने पक्ष में करके चुनाव जीतने का फंडा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
यह एक खुला सत्य है कि हर चोट के लिए पैसे बांटे गए, हालांकि इसकी कहीं भी सार्वजनिक घोषणा नहीं की जाती। यह साफ तौर पर महसूस किया गया कि लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव, यानी मतदान प्रक्रिया, और आम नागरिकों का अपना प्रतिनिधि चुनने का हक पैसे के दम पर कुछ स्वार्थी राजनेताओं ने छीनने की कोशिश की। उन्होंने मतदाताओं के हक के वोट और उनके आत्म-सम्मान को खरीदने की कोशिश की।
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यही कारण है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी उम्मीदवार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं, कई जानकार नागरिक इसे ही लोकतंत्र की सच्ची जीत भी कह रहे है। उनका मानना है कि हर जागरूक नागरिक ने मतदान करते समय यह सोचकर चोट डाला होगा कि वे अपने प्रतिनिधि को पांच साल के लिए चुन रहे हैं, जो उनके वार्ड के विकास के लिए प्रतिबद्ध रहेगा, न कि सिर्फ पैसे के लालच में।






