प्रतीकात्मक तस्वीर (AI Generated)
Alaknanda Galaxy Discovery: पुणे स्थित एक खगोल भौतिकी संस्थान के दो शोधकर्ताओं ने अब तक देखी गई सबसे दूरस्थ सर्पिल आकाशगंगाओं में से एक की पहचान की है। ‘अलकनंदा’ नाम दी गई यह गैलेक्सी उस समय मौजूद थी जब ब्रह्मांड केवल 1.5 अरब वर्ष पुराना था। इस खोज ने शुरुआती ब्रह्मांड के विकास संबंधी मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती दी है।
पुणे स्थित एक खगोल भौतिकी संस्थान के दो शोधकर्ताओं, राशि जैन और योगेश वाडेकर, ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक महत्वपूर्ण खोज की है। उन्होंने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (जेडब्लूएसटी) का उपयोग करते हुए, अब तक देखी गई सबसे दूरस्थ सर्पिल आकाशगंगाओं में से एक की पहचान की है।
पुणे के शोधकर्ताओं ने इस भव्य सर्पिल आकाशगंगा को हिमालय की एक नदी के नाम पर ‘अलकनंदा’ नाम दिया है। यह आकाशगंगा उस समय अस्तित्व में थी जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का केवल 10 प्रतिशत था।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इतनी सुगठित सर्पिल आकाशगंगा का पता लगना अप्रत्याशित है। यह खोज इस प्रमाण को और पुष्ट करती है कि शुरुआती चरण का ब्रह्मांड पहले की धारणा से कहीं अधिक विकसित था। एक शोधकर्ता ने कहा कि यह पता चलता है कि परिष्कृत संरचनाएं हमारी सोच से कहीं पहले ही बन रही थीं।
‘अलकनंदा’ नाम दी गई यह आकाशगंगा मौजूदा सिद्धांत को चुनौती देती है कि प्रारंभिक जटिल आकाशगंगा संरचनाओं का निर्माण कैसे हुआ। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह आकाशगंगा, 1.5 अरब वर्ष पुराना होने के बावजूद, आज की आकाशगंगाओं के समान ही प्रतीत होती है।
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यह निष्कर्ष यूरोपीय पत्रिका ‘एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ता जैन ने बताया कि अलकनंदा का रेडशिफ्ट लगभग 4 है। रेडशिफ्ट 4 का सीधा मतलब यह है कि इस आकाशगंगा से निकली रोशनी को पृथ्वी तक पहुंचने में 12 अरब वर्षों से अधिक का समय तय करके आना पड़ा है।
‘रेडशिफ्ट’ खगोलीय शब्दावली में उपयोग होने वाला एक महत्वपूर्ण पद है। सरल शब्दों में, जब कोई खगोलीय वस्तु, जैसे तारा या आकाशगंगा, हमसे दूर जा रही होती है, तो उसके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की तरंगें खिंचकर लंबी हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश का रंग स्पेक्ट्रम के लाल (रेड) दिशा की ओर खिसक जाता है, जिसे ‘रेडशिफ्ट’ कहा जाता है।