बाल कीर्तनकार गोविंद की रहस्यमय मौत (सौजन्यः सोशल मीडिया)
परभणी: पंढरपुर की वारी हर साल अगले साल के लिए अविस्मरणीय यादें छोड़ जाती है। लेकिन इस साल कुछ घटनाओंने वारी को कलंकित करने का काम किया है। जिनमें दौंड तालुका में वारकऱियों को लूट कर नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का मामला हो या फिर ह.भ.प. संगीता ताई महाराज की हत्या हो। अब एक बार फिर एक बाल कीर्तनकार की मौत से तहलका मच गया है।
श्रद्धा, भक्ति और संगीत से ओतप्रोत पंढरपुर की आषाढ़ी वारी इस वर्ष एक गहरे शोक में डूब गई। संत सोपान काका महाराज की दिंडी क्रमांक १६ में मृदंग बजाकर कीर्तन करने वाला 13 वर्षीय बाल वारकरी गोविंद विनायक शिंदे अब इस संसार में नहीं रहा।
गोविंद, महाराष्ट्र के परभणी ज़िले के गंगाखेड़ तालुका स्थित मसला गांव का रहने वाला था। उसकी मृदंग की थाप और भावपूर्ण कीर्तनों ने न केवल वारकरी संप्रदाय के लोगों का दिल जीता था, बल्कि कई संतों की आंखों में भी श्रद्धा के आँसू ला दिए थे। वह अपनी मासूमियत और भक्ति के कारण दिंडी का सबसे प्रिय चेहरा बन गया था।
लेकिन 3 जुलाई की सुबह पंढरपुर तहसील के भंडी शेगांव में एक दर्दनाक हादसा हुआ। जब सभी श्रद्धालु विश्राम कर रहे थे, तभी गोविंद स्नान के लिए कुएं की सीढ़ियों पर बैठा था और तभी वह अचानक कुएं में गिर गया। देखते ही देखते, वह इस दुनिया से चला गया। इस हादसे की खबर जैसे ही दिंडी और गांव में फैली, हर कोई स्तब्ध रह गया। एक बालक, जिसने पिछली रात ही भक्ति की स्वर-लहरियों से वातावरण को गुंजायमान किया था, अब मौन पड़ा था।
गोविंद के पिता विनायक शिंदे, जो एक साधारण किसान हैं, इस मौत को हादसा मानने को तैयार नहीं हैं।उनका कहना है। “मेरा बेटा यूं ही कुएं में गिर ही नहीं सकता। कुछ न कुछ ऐसा हुआ है जिसे छिपाया जा रहा है। यह कोई हादसा नहीं, बल्कि एक साजिश है।”उन्होंने प्रशासन से गहराई से जांच करने की मांग की है और कहा है कि उन्हें न्याय चाहिए।
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विनायक शिंदे ने बेटे की मृदंग साधना को देखकर उसे विशेष प्रशिक्षण दिलवाया था। गोविंद ने कम उम्र में ही दिंडियों में कीर्तन और वादन के माध्यम से अपनी अलग पहचान बना ली थी। उसकी मृदंग की थाप में भक्ति थी, लय थी और आत्मा थी।
4 जुलाई की सुबह, गोविंद के पार्थिव शरीर को उसके पैतृक गांव मसला लाया गया, जहाँ *गोदावरी नदी के किनारे अंतिम संस्कार* किया गया। माता-पिता, दादा-दादी, छोटा भाई सभी की आंखों में आंसू और दिलों में पीड़ा थी। उस छोटे से गांव ने एक नन्हे संत को खो दिया था।
क्या यह वास्तव में एक हादसा था? क्या गोविंद को किसी ने जानबूझकर निशाना बनाया? क्या उसकी प्रतिभा किसी को खटक रही थी? इन सवालों के उत्तर अभी बाकी हैं। पर एक बात तय है। गोविंद की मृदंग की थाप भले ही अब न सुनाई दे, लेकिन उसकी भक्ति, उसका समर्पण और उसकी मासूम छवि, हर वारकरी के हृदय में सदा जीवित रहेगी।