प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Nashik Tapovan Controversy: नासिक कुंभ मेले के लिए प्रस्तावित वृक्षों की कटाई के खिलाफ चल रहा आंदोलन अब एक नए और गंभीर मोड़ पर आ गया है।
सरकारी दस्तावेजों की जांच के दौरान एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि साल 1989 के बाद से ‘तपोवन’ नाम को आधिकारिक रिकॉर्ड से पूरी तरह हटा दिया गया है।
इस खुलासे के बाद नासिक के पर्यावरण प्रेमियों और इतिहासकारों ने इसे शहर की सांस्कृतिक पहचान मिटाने की साजिश करार देते हुए अपना विरोध तेज कर दिया है।
पर्यावरण प्रेमी और शोधकर्ता – जानी द्वारा किए गए दस्तावेजों के गहन अध्ययन से यह सनसनीखेज मामला सामने आया है। साल 1960 और 1980 के नगर निगम व सरकारी रिकॉर्ड में इस क्षेत्र का उल्लेख स्पष्ट रूप से ‘तपोवन’ के रूप में मिलता है।
1989 के बाद के दस्तावेजों में यह नाम अचानक गायब हो गया है। देवांग जानी ने तीखा सवाल उठाया है कि, “प्रभु श्री राम की तपोभूमि का नाम कागजों से मिटाना क्या केवल एक संयोग है या कोई सोचा-समझा दांव ? नासिक की पहचान का ऐसा अपमान शहरवासी बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
तपोवन में साधुग्राम बनाने के लिए करीब 1,700 पेड़ों को काटने का प्रस्ताव पहले से ही विवादों में है। अब ‘तपोवन’ नाम के लोप होने की खबर ने आग में घी डालने का काम किया है।
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यह लड़ाई अब सिर्फ पेड़ों को बचाने की नहीं, बल्कि नासिक के गौरवशाली इतिहास और अस्मिता को बचाने की है। आंदोलनकारियों ने मांग की है कि सरकारी रिकॉर्ड में तुरंत ‘तपोवन’ नाम बहाल किया जाए।
इतिहास और पौराणिक कथाओं के अनुसार, तपोवन का महत्व निर्विवाद है। दंडकारण्य में प्रवास के दौरान प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ अगस्त्य ऋषि के आश्रम आए थे, जो इसी क्षेत्र में था।
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गोदावरी के तट पर वट, पीपल, आंवला, बेल और अशोक के पांच वृक्षों के कारण इसे पंचवटी कहा गया, और ऋषियों की साधना स्थली होने के कारण इसे तपोवन नाम मिला। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम अवतार के शोध में भी रामायण कालीन 200 से अधिक स्थलों में तपोवन का स्पष्ट उल्लेख है।
नामांकन के आखिरी दिन भाजपा को बड़ा झटका लगा, जब टिकट न मिलने से नाराज कई इच्छुक उम्मीदवारों ने पाला बदल लिया, प्रभाग क्रमांक 13 सहित कई क्षेत्रों के उम्मीदवारों ने शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गुट) का दामन थामकर नामांकन दाखिल किया। जिन नेताओं को किसी भी प्रमुख दल से टिकट नहीं मिल सका, उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है।