हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: सीबीआई और एसीबी के विशेष न्यायालय ने डब्ल्यूसीएल (WCL) इंजीनियर गणेश वाघमारे को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया है। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि शिकायतकर्ता ने आरोपी से अपने बिलों को पास कराने के लिए संपर्क किया था।
आरोप था कि इंजीनियर वाघमारे ने अवैध रूप में 14,000 रुपये की मांग की थी। शिकायत दर्ज होने के बाद सीबीआई ने कथित तौर पर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के माध्यम से मांग का सत्यापन किया था और फिर जाल बिछाया गया था जिसमें आरोपी पर राशि स्वीकार करने का आरोप लगाया गया था। वाघमारे की अधि। प्रकाश नायडू ने पैरवी की।
बचाव पक्ष की पैरवी कर रहे अधि। नायडू ने तर्क दिया कि सक्षम प्राधिकारी जिस पर मंजूरी देने का आरोप था, उसकी जांच नहीं की गई। अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक की ओर से उनके अधिकृत अधिकारी ने रिकॉर्ड पर एक मंजूरी आदेश प्रस्तुत किया था जिस पर केवल अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर थे, न कि सक्षम प्राधिकारी के थे। इसे मंजूरी प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण दोष माना गया।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि मांग का सत्यापन मोबाइल फोन पर बातचीत के माध्यम से किया गया था लेकिन सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोप के अनुसार जो सिम कार्ड आरोपी का था, वह वास्तव में डब्ल्यूसीएल के उप-क्षेत्र प्रबंधक इंद्रजीत सिंह के नाम पर पंजीकृत था। सीबीआई स्वयं इस तथ्य को दर्शाने वाला ग्राहक आवेदन फॉर्म अपनी चार्जशीट के साथ दाखिल करने के बावजूद आरोपी के साथ उस सिम कार्ड के संबंध या कब्जे को साबित करने में विफल रही।
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सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता ने स्वयं यह स्वीकार किया कि आरोपी द्वारा 14,000 रुपये के रिश्वत की कोई मांग या बातचीत नहीं हुई थी। यह स्वीकार करना कथित तौर पर सत्यापित की गई मांग की सत्यता को नकार देता है।
शिकायतकर्ता ने यह भी स्वीकार किया कि जिन बिलों के लिए उसने घूस की मांग का दावा किया था वे शिकायत दर्ज होने से पहले ही क्लियर हो चुके थे। इसके अलावा आरोपी के पास कोई काम लंबित नहीं था और न ही वह बिलों को जारी करने या पास कराने के लिए अधिकृत या सक्षम था। इंजीनियर की ओर से अधिवक्ता प्रकाश नायडू, होमेश चौहान, मितेश बैस, सुरभि (गोडबोले) नायडू और ध्रुव शर्मा ने पैरवी की।