विदर्भ की जनता को कुछ नहीं मिला (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: नागपुर में सप्ताहभर चले महाराष्ट्र विधानमंडल के शीत सत्र से विदर्भ की जनता को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। किसान भी मुंह ताकते रह गए। विपक्ष का आरोप है कि यह सत्र पूरी तरह निरर्थक साबित हुआ और केवल पूरक मांगों को पारित करने के लिए आयोजित किया गया। विपक्षी दलों ने संयुक्त पत्रकार परिषद में सरकार की तीखी आलोचना की। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता भास्कर जाधव ने कहा कि यह अधिवेशन सरकारी खजाने से चुनावी खर्च जुटाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।
सरकार ने जो भी घोषणाएं कीं, वे मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के लिए थीं, जबकि विदर्भ के लिए एक भी ठोस घोषणा नहीं की गई। उन्होंने कहा कि यह अधिवेशन विदर्भ की जनता के साथ धोखा है और इसे महानगरपालिका चुनावों को ध्यान में रखकर रखा गया।
सचिन अहीर ने कहा कि सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के कई आरोपों को लेकर सवाल पूछे गए, लेकिन सत्तापक्ष कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। विदर्भ के धान, सोयाबीन और कपास किसान बड़ी उम्मीदों के साथ इस सत्र की ओर देख रहे थे, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। विपक्ष ने धान और सोयाबीन पर बोनस देने की मांग की थी, लेकिन सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि राज्य का युवा तेजी से नशे के जाल में फंसता जा रहा है, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ठोस कार्ययोजना पेश नहीं की और न ही प्रभावी कार्रवाई के संकेत दिए।
विधान परिषद सदस्य सतेज पाटिल ने कहा कि सत्र में घोषणाओं की बाढ़ आई, लेकिन ज़मीनी फैसले नदारद रहे। कपास खरीद केंद्र बढ़ाने की मांग की गई, पर उस पर भी कोई निर्णय नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सरकार की जेब में पैसे नहीं हैं, लेकिन घोषणाएं बहुत हैं। यही महागठबंधन सरकार की वास्तविक स्थिति है। इतनी घोषणाएं की गई हैं कि उन्हें पूरा करने के लिए बजट भी कम पड़ जाएगा।
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के नेता जयंत पाटिल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सदन में निवेश और एमओयू की बात कही, लेकिन जिन कंपनियों के साथ समझौते किए गए हैं, वे राज्य में वास्तव में नहीं आ रही हैं। हकीकत में कोई ठोस निवेश नहीं हुआ, इसी कारण बेरोजगारी की समस्या जस की तस बनी हुई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों पर सरकार कोई ठोस जवाब नहीं दे सकी। शशिकांत शिंदे ने कहा कि विपक्ष ने सदन में आक्रामकता के साथ जनहित के मुद्दे उठाए, लेकिन सत्ताधारी दल हर मोर्चे पर जवाब देने में विफल रहा। सात दिनों के इस शीत सत्र से आम जनता में गहरी निराशा फैली है।